लोकसभा में नया बिल: गिरफ्तारी पर मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद जाएगा

मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी पर पद गंवाने का प्रावधान: लोकसभा में शाह ने रखे तीन अहम बिल

भारतीय राजनीति में अक्सर यह सवाल उठता रहा है कि जब कोई जनप्रतिनिधि, खासकर मुख्यमंत्री या मंत्री, गंभीर अपराधों में आरोपी होकर गिरफ्तार हो जाए तो क्या उसे पद पर बने रहने का अधिकार होना चाहिए? अब केंद्र सरकार ने इस पर निर्णायक कदम उठाते हुए लोकसभा में तीन अहम विधेयक पेश किए हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने 20 अगस्त को लोकसभा में ये बिल रखे, जिन पर विपक्ष ने कड़ा विरोध जताया।

इन बिलों के अनुसार, यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री ऐसे अपराध में गिरफ्तार या 30 दिन से ज्यादा हिरासत में रहता है जिसकी सजा पांच साल या उससे ज्यादा हो सकती है, तो उसे अपने पद से इस्तीफा देना होगा।


तीनों बिल और उनका मकसद

1. गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025

केंद्र शासित प्रदेशों के मौजूदा कानून (1963 का अधिनियम) में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि गंभीर अपराध में आरोपी और हिरासत में गए मंत्री को पद से हटाया जा सके। अब इस संशोधन से कानूनी प्रावधान जुड़ जाएगा, जिससे ऐसे मंत्री स्वतः पदमुक्त हो जाएंगे।

2. 130वां संविधान संशोधन बिल 2025

यह सबसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव है, क्योंकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में बदलाव का सुझाव दिया गया है। इसके तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्री यदि किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार होते हैं और कम से कम 30 दिन हिरासत में रहते हैं, तो उनका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।

3. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। इस संशोधन से अब वहां के मुख्यमंत्री या मंत्री की गिरफ्तारी और 30 दिन की हिरासत की स्थिति में पद से हटाने का प्रावधान जुड़ जाएगा।


राजनीतिक पृष्ठभूमि और विवाद

केंद्र का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में केवल दोषी करार दिए गए जनप्रतिनिधियों को ही पद से हटाया जा सकता है। लेकिन जब तक कोर्ट का फैसला न आ जाए, तब तक मंत्री या मुख्यमंत्री जेल में रहते हुए भी पद पर बने रह सकते हैं।

  • दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल शराब नीति केस में गिरफ्तार होने के बाद भी 6 महीने तक पद पर बने रहे थे।

  • तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी 241 दिन तक जेल में रहने के बावजूद मंत्री पद पर रहे।

इन घटनाओं को आधार बनाकर केंद्र सरकार ने कहा कि लोकतंत्र और सुशासन की साख के लिए जरूरी है कि ऐसे नेताओं को पद से हटाने का स्पष्ट प्रावधान हो।

हालांकि विपक्ष इसे संविधान विरोधी और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बता रहा है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस और सपा ने लोकसभा में जोरदार विरोध किया। विपक्ष की मांग है कि इन बिलों को वापस लिया जाए या इन्हें संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा जाए।




ऑनलाइन गेमिंग पर भी कड़ा कानून

इसी दिन केंद्र ने लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग पर बैन लगाने वाला बिल भी पेश किया। इसमें ऑनलाइन मनी गेम्स, फर्जी विज्ञापन या लोगों को बहकाने वाली गतिविधियों के लिए तीन साल की कैद या 1 करोड़ रुपए तक का जुर्माना, या दोनों सजा का प्रावधान है।


लोकतंत्र और सुशासन की दिशा में बड़ा कदम?

केंद्र सरकार का मानना है कि यह सुधार लोकतंत्र की मजबूती और जनता के विश्वास को बढ़ाएगा। भ्रष्टाचार, हत्या जैसे गंभीर अपराधों में आरोपी मंत्री या मुख्यमंत्री यदि जेल में रहते हुए भी सत्ता का लाभ उठाते हैं तो इससे शासन की साख गिरती है।

लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या यह प्रावधान राजनीति में नए विवाद खड़े करेगा? क्योंकि गिरफ्तारी का मतलब दोषी होना नहीं होता, और 30 दिन की हिरासत के आधार पर पद खत्म करना कई मामलों में गलत भी साबित हो सकता है।


निष्कर्ष

लोकसभा में पेश ये तीनों बिल आने वाले समय में भारतीय राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं। यदि ये कानून बनते हैं तो देश के प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री तक सभी पर यह लागू होगा। विपक्ष इसे राजनीतिक हथियार मान रहा है, जबकि सरकार इसे लोकतंत्र को शुद्ध करने की पहल बता रही है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इन बिलों पर कितना व्यापक सहमति बन पाती है और क्या वास्तव में यह कदम भारतीय लोकतंत्र को और पारदर्शी बनाएगा या फिर नए कानूनी और राजनीतिक विवादों को जन्म देगा।




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