कागजों में उगी धान, किसानों के नाम का अनुदान खा गए मिलर्स और आढ़ती

धान घोटाला -2



सरकार चुनाव में व्यस्त रही, मंडी में आढ़तियों और राइस मिलर्स ने कर दिया खेल


कुटेल के राइस मिलर्स, एसोसिएशन के प्रधान समेत कई राइस मिल संचालकों ने कटवाए फर्जी पर्चे




करनाल की मंडी में अरबों का धान घोटाला , अब किसान धान को ट्राली में डाल बेचने के लिए घूम रहे मारे मारे






द इनसाइडर न्यूज ब्यूरो , करनाल

सरकार चुनाव में व्यस्त थी, इसी बीच करनाल की मंडियों में धान खरीद के नाम पर अरबों रुपए का घोटाला हो गया। आढ़ती व राइस मिलर्स ने मिल कर धान की फर्जी खरीद कर डाली। अब सरकारी दस्तावेजों में धान की खरीद पूरी हो चुकी है। इसी को आधार बना कर सरकार ने अब आगे धान खरीदने से मना कर दिया है। इस घोटाले से जहां सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ है, वहीं किसानों के लिए आफत बन गया है। क्योंकि उनकी धान अब मंडियों में पड़ी है। सरकार खरीद नहीं रही, प्राइवेट खरीददार है नहीं। ऐसे में किसान के सामने अब कोई विकल्प ही नहीं है। वह तय नहीं कर पा रहा कि अब धान का करें तो  आखिर क्या करें? 

यूं कागजों में उगा धान 

करनाल में एक लाख 65 हजार हेक्टेयर में धान की खेती हुई। इसमें 55 प्रतिशत मोटी धान यानी पीआर है। अब यदि प्रति एकड़ धान औसतन 35 क्विंटल भी पैदा हुई तो यह 80 लाख क्विंटल के आस पास बनती है। अब जबकि जिले में दस प्रतिशत धान खेतों में है। दूसरी ओर मंडी में डेढ़ करोड़ क्विंटल धान की खरीद हो चुकी है। अब इतना धान आया कहां से? यह फर्जी धान है। जो सिर्फ कागजों में खरीदा हुआ दिखाया गया है। 








फर्जी खरीद होती ही क्यों है?

सरकार पीआर श्रेणी के धान का समर्थन मूल्य देती है। अब यदि यह धान खुले में नहीं बिकता तो सरकार इस धान को खरीद लेती है। इस बार धान का समर्थन मूल्य 1835 रुपए रखा गया। सरकार धान का राइस मिलर्स को देती है, वहां से चावल तैयार करा कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत यह चावल बांट दिया जाता है। मिलिंग की एवज में सरकार मिलर्स को पैसे देती है। अब होता यह है कि मिलर्स आढ़ती व मंडी कमेटी और खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों के साथ मिल कर फर्जी जे फार्म कटवा लेता है। 

कैसे खरीदा मिलर्स ने धान 






मिसर्ल ने आढ़तियों व मंडी कमेटी के साथ मिल कर फर्जी धान की खरीद दिखा दी। यहीं वजह है कि सरकारी रिकार्ड में धान की खरीद इतना बड़ा आंकड़ा पार कर गयी। अब क्योंकि सरकारी धान खरीद के लिए पैसा सेंटर से आता है। सेंटर ने इससे ज्यादा फंड देने से इंकार कर दिया है। इस वजह से सरकारी खरीद बंद हो रही है। 


तो क्या अधिकारी भी इस खेल में मिले हैं 

निश्चित तौर पर खाद्य आपूर्ति विभाग के खरीद इंस्पेटर इस खेल में सीधे तौर पर मिले हुए हैं। उनकी सीधी मिलीभगत के बिना यह घोटाला संभव ही नहीं है। करनाल मंडी में खाद्य आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टर समीर विशिष्ट की ड्यूटी है। मंडी में जो फर्जी पर्चे कटे हैं, इसे रोकने की जिम्मेदारी उनकी है। लेकिन  उन्होंने इसे रोकने की बजाय मिलर्स के साथ मिल कर इसे बढ़ावा दिया है। 


कैसे पकड़ा जा सकता है यह घोटाला 

कुटेल के राइस मिल में उनकी तय क्षमता से बहुत ज्यादा धान दिया गया है। इसी तरह से अन्य राइस मिल संचालकों को भी उनकी तय क्षमता से ज्यादा धान फर्जी खरीद माध्यम से दिया गया है। अब इस घोटाले को पकड़ने का सिंपल तरीका यह है कि इनकी फिजिकल वैरिफिकेशन करा दी जाए। भ्रष्टाचार मिटाओ मोर्चा के अध्यक्ष सतपाल सिंह चौहान ने बताया कि जांच कमेटी में जिले का कोई भी अधिकारी शामिल नहीं होना चाहिए। अब यह जांच या तो विजिलेंस, विधानसभा सदस्यों की कमेटी, या फिर राज्य स्तर की कमेटी से करायी जानी चाहिए। इस जांच में साफ पता चल जाएगा कि मिलर्स को जितना धान अलॉट किया गया दिखाया गया है, उसका एक चौथाई भी इनके गोदाम में नहीं है। 



धान खरीद घोटाले की सीरिज में आज  दूसरी स्टोरी है। 






धान घोटाला 1
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