वेदांता के एथेना थर्मल सिंधीतराई से ग्राउंड रिपोर्ट


दो जून रोटी की तलाश में मौत के मुहाने पर खड़े गांव का संघर्ष 

मैं छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के सिंधीतराई गांव में था। 

हां वेदांता एक कोल बेस थर्मल लगा रहा है। गांव से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर। वह महिला थर्मल में नौकरी के लिए संघर्ष कर रही है। वेदांता और आदिवासियों पर रिपोर्टिंंग के लिए मैं वहां गया था। 

 यह छोटा सा गांव है। कारपोरेट, सरकार, एक्टिवस्ट, एनजीओ, प्रदूषण पर हमारी चिंता, भूखमरी, बदहाली और मनी व मसल पावर के परपंच का यह गांव जंक्शन है। 


थर्मल अभी शुरू नहीं हुआ। ग्रामीणों का संघर्ष जारी है। दो तरह का संघर्ष है। एक उनका जिनकी जमीन थर्मल के लिए अधिग्रहण हुई। इनमें से कई का आरोप है किउन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला। दूसरा उनका जो यहां नौकरी चाहते हैं। 


दोनो अलग अलग लड़ रहे हैं। नौकरी चाहने वालों में महिलाएं व  युवा शामिल है। उम्रदराज लोग अपेक्षाकृत खुश है। क्योंकि दारू मुर्गे का जुगाड़ आराम से हो रहा है। लिहाजा उन्हें चिंता नहीं। गांव की महिला  सरपंच का पति  मुझे देख कर भड़क गया। मुझे उसने जाने के लिए बोला। 

सरपंच पति  बस बोल ही सकता था। मेरा कुछ बिगाड़ तो नहीं सकता था। क्योंकि उसके अंदाज से मैंने समझ लिया था वह इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता।  लिहाजा मैं निश्चिंत था। मैं पंचायत घर से निकल कर रामाधीन के घर आ गया। रामाधीन का घर सड़क के पास है। 

उसकी सारी जमीन थर्मल में चली गई। उसका एक बेटा व दो बटियां है। घर के अंदर एक काले रंग की गाड़ी खड़ी है। रमाधीन का दरवाजा खटखटाया तो अंदर से आवाज आयी, अभी आता हूं। 


हम बाहर उसका इंतजार कर रहे थे। एक बड़ा सा दरवाजा घर से बाहर लगा था। 


कुछ देर बाद रमाधीन घर से बाहर आया। वह अधनंगा था। टांगों में एक गमछा भर । नशे की वजह से वह लड़खड़ा कर चल रहा था। मैंने पूछा आपने कंपनी पर मुआवजे के लिए केस किया था। 


बोला हां, किया था। क्या हुआ? मैंने सवाल किया। बोला, केस हार गया। क्यों? पता नहीं। 

अब अागे क्या? बोला, कंपनी अब दस हजार रुपए महीना दे रही है। काम चल रहा है। अब क्या चाहते हो? मैंने पूछा। बोला बेटे नटवर को नौकरी मिल जाए। बस...। 

 वह ज्यादा बातचीत के मूड में नहीं था। कुर्सी पर वह पसर कर बैठ गया। मैं खड़ा खड़ा उससे बातचीत कर रहा था। टीम के साथी वीडियोग्राफर उसका शॉट लेना चाहते थे। लेकिन मैंने मना कर दिया। पता नहीं क्यों? मैं अभी तक समझ नहीं पाया। 



मेरी चिंता थी कि यहां स्टोरी कैसे बनेगी। क्योंकि गांव के ज्यादातर लोग थर्मल के हक में थे। 


इसी उधेड़ बुन में मैं थर्मल के गेट की ओर चला गया। अब हल्की बरसात शुरू हो रही थी। मैं गाड़ी में अाकर बैठ गया। थर्मल से कोई पांच सौ गज की दूरी पर एक छोटी सी दुकान थी। मुझे लगा यहां से कोई जानकारी मिलेगी।

मैं दुकानदार से विरोध प्रदर्शन की बाबत बातचीत करने लगा। दुकानदार एक 25 साल का युवक है। पास ही उसका ससुर खड़ा था। उसने बताया कि हमारी जमीन भी थर्मल में गई है। 

मुआवजा तो मिला। लेकिन अब न नौकरी मिल रही न भत्ता। क्यों? मैंने सवाल किया। उसने बताया  उसके पिता की मौत हो गई। अब कंपनी उसे वारिस नहीं मानती,इसलिए। उसने जवाब दिया। 


मैंने उसे पूछा क्या वह उन महिलाओं से मिलवा सकता है, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन किया था। वह तैयार हो गया। 

वह मुझे गांव की महिला रूकमणि के घर ले गया। 


रूकमणि एक जुझारू महिला है। वें थर्मल में महिलाओं के लिए नौकरी की मांग कर रही है। उन्होंने बताया कि महिलाअों को रोजगार चाहिए। पांच गांव की महिलाओं का एक छोटा सा संगठन बना कर वह अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। 


रूकमणि ने बताया कि हमें डराया जा रहा है। गांव के लोग शराब के नशे में हमारे उपर कैमेंट करते हैं। जब हम प्रदर्शन के लिए जाते है तो अधिकारी हमें जेल में बंद करने की धमकी देते हैं। 


हमें शरारती तत्व करार दिया जाता है। गांव के लोगों को यह लगता है कि हम महिलाएं हैं, हमें घर में रहना चाहिए। काम क्यों करें। हम घर से बाहर निकलती है तो लोग मजाक बनाते हैं। हमारा अपमान किया जाता है। प्रदर्शन के वक्त लोग हमें डराने आ जाते हैं।


प्रशासनिक अधिकारी  हमें कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता बता रहा है। वह हम पर गांव का माहौल खराब करने का आरोप लगा रहा है। हम क्या मांग रहे हैं? बस रोजगार...।  


रूकमणि जब यह बोल रही थी तो उसकी आंखों नम हो जा रही थी। मैं उनके चेहरे की ओर देख रहा था। टीम मेरी ओर...। क्या करना है। शायद टीम के लोग पूछ रहे थे। कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। 


गांव के पंच बजरंग ने बताया कि सरपंच को कंपनी ने अपनी ओर मिला लिया है। पटवारी और ग्राम सचिव कंपनी के लिए काम कर रहे हैं। प्रशासन कंपनी की जुबान बोल रहा है। 


स्थानीय नेता और सरकार कंपनी को गांव के विकास व तरक्की के नए रास्ते खोलने वाला बताते हुए नहीं थक रहे हैं। इस पूरे परिदृश्य में कंपनी के लोग कहीं नजर नहीं आते। लेकिन उनकी जुबान बोलने वाले यहां इतने हैं कि आप समझ ही नहीं पाएंगे कौन सही है कौन गलत। 


कारपोरेट कैसे काम करता है?वह कुछ करता नहीं बस कराता है।  मैं इसका चश्मदीद गवाह बना हुआ था। इस गांव में। 


रूकमणि के घर से निकल हम शांति के घर गए। वह भी रोजगार की मांग कर रही है। अभी तक हमने एक भी इंटरव्यू, नहीं किया। न ही कोई शॉट लिया। पता नहीं क्यों पूरी टीम जैसे चुप सी हो गई। 


शांति का घर एक झोपड़ी है। उसके शरीर पर कपड़े पूरे नहीं है। दो माह का बच्चा उसकी गोद में है। टीम ने मेरी ओर देखा। चीफ वीडियोग्राफर ने इशारा किया, यह सही सब्जेक्ट है। मैंने मना कर दिया। वो झुंझला कर गाड़ी में चला गया। 

शांति को पता ही नहीं क्या चल रहा है?


 उसका पति भी शराबी है। उसने बताया वह थर्मल में काम चाहती है। इसलिए प्रदर्शन में भाग लेती है। उसने बताया कि थर्मल लगा तो हमें बताया गया कि यहां काम मिलेगा, हमारे पास भी कुछ पैसे आ जाएंगे। हम सही से खाना खा सकेंगे। दिहाड़ी ही मिल जाए तो भी मेरा काम चल जाएगा। मुझे काम दिलवा दीजिए, वह हाथ जोड़ रही थी। 


मेरा गला सूख रहा था। मैंने पूछा पानी मिलेगा। उसने कहा, जी नहीं, घर में पानी नहीं है। बच्चा छोटा होने की वजह से वह पानी लाने नहीं जा सकती। दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। 

शाम का बच्चा जब सो जाता है तो वह पानी लाने जाती है। बच्चे और पानी को उठा कर चल जो नहीं सकती। मुझे झटका लगा। साउंड रिकॉर्ड करने वाली दीपिका उठी। मैं समझ गया वह गाड़ी में पानी लेने जा रही है। मैंने मना कर दिया। बोतल का पानी इस महिला के सामने पीने की मेरी हिम्मत ही नहीं थी। 


महिलाएं थर्मल में दो जून की रोटी तलाश रही थी। मैं सोच रहा था, जिस दिन थर्मल चलेगा, उस दिन क्या होगा? यह गांव तो प्रदूषण की भारी चपेट में आ जाएगा। जहरीला धुआं इतने फेफड़ों को छलनी कर देगा। 

नशे में धुत गांव के लोग तब क्या करेंगे? रोजगार मांग रही महिलाओं का तब क्या होगा? प्रदूषण जब इनका जीना मुश्किल कर देगा। तब इन्हें पता चलेगा, कि वह ठगे गए। लेकिन तब कुछ नहीं हो सकता। 

मैं उस छोटे से बालक और उसकी माता की आंखों में देख रहा था। मुझे उनके भविष्य की चिंता सता रही थी। 

मैं थर्मल प्रभावित कई क्षेत्रों की रिपोर्टिग कर चुका हूं। देख चुका हूं,वहां पर्यावरण को लेकर कितनी दिक्कत आती है। कैसे वहां के लोग नरक की जिंदगी जीते हैं।  यहां भी ऐसा ही कुछ होगा। मैं सोच रहा था। 


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