ओडिशा में वेदांता का खनन प्रोजेक्ट अटका,

ओडिशा में वेदांता का खनन प्रोजेक्ट अटका, आदिवासियों ने लगाए फर्जी ग्राम सभा के आरोप

भुवनेश्वर, 


रबपति कारोबारी अनिल अग्रवाल की लंदन स्थित कंपनी वेदांता लिमिटेड को ओडिशा में अपने पहले बॉक्साइट खदान प्रोजेक्ट पर बड़ा झटका लगा है। आरोप है कि कंपनी ने जंगलों पर निर्भर आदिवासी समुदायों की सहमति फर्जी ग्राम सभा रिकॉर्ड के जरिए हासिल की।

30 जुलाई 2025 को ओडिशा हाईकोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने फिलहाल इस प्रोजेक्ट के लिए जंगलों की कटाई की मंजूरी पर रोक लगा दी है।

मामला क्या है?

वेदांता ने कालाहांडी और रायगड़ा जिलों में फैले 9 मिलियन टन प्रति वर्ष (MTPA) क्षमता वाले सिजिमाली बॉक्साइट खदान प्रोजेक्ट के लिए 708 हेक्टेयर से अधिक जंगल भूमि की मांग की थी।
लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि दिसंबर 2023 में जिन ग्राम सभाओं से सहमति ली गई, वे वास्तव में हुई ही नहीं।

आदिवासियों के आरोप

  • मृत व्यक्तियों और बाहर पढ़ रहे युवाओं के नाम पर फर्जी हस्ताक्षर व अंगूठे के निशान लगाए गए।

  • बाहर से लोगों को लाकर उनकी तस्वीरें ग्राम सभा की बताकर पेश की गईं।

  • 10 प्रभावित गांवों की ताजा ग्राम सभाओं (अगस्त-सितंबर 2024) में समुदायों ने साफ तौर पर प्रोजेक्ट का विरोध किया।

हाईकोर्ट और केंद्र की कार्रवाई

मार्च 2025 में ओडिशा हाईकोर्ट ने साफ किया था कि फॉरेस्ट राइट्स एक्ट, 2006 के तहत स्थानीय समुदायों की सहमति अनिवार्य है। अदालत ने कहा था कि ग्राम सभाओं को विश्वास में लिए बिना जंगल भूमि हस्तांतरित नहीं की जा सकती।
इसके बाद केंद्र सरकार की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी (FAC) ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की और प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी।

वेदांता का पक्ष

कंपनी का दावा है कि प्रभावित इलाके में पेड़-पौधों की घनी आबादी नहीं है और रोजगार के अवसर मिलने से स्थानीय लोगों को फायदा होगा। यह खदान लंजिगढ़ रिफाइनरी के लिए आधे बॉक्साइट की आपूर्ति करेगी।

विवाद गहराता जा रहा है

  • आदिवासी समुदायों का कहना है कि प्रोजेक्ट से उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ेगी। सिजिमाली पहाड़ी को वे देवता 'तिजिराजा' का निवास मानते हैं।

  • एक्टिविस्ट मेधा पाटकर समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को हाल ही में रायगड़ा जिले में प्रवेश से रोका गया। हाईकोर्ट ने सरकार की इस कार्रवाई को “असंवैधानिक” बताया।

  • प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और मुआवजे पर भी अभी तक स्पष्ट योजना नहीं बनी है।

नतीजा

वेदांता का यह महत्वाकांक्षी खदान प्रोजेक्ट अब कानूनी और सामाजिक विरोध की गिरफ्त में है। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है और जब तक ग्राम सभाओं की वास्तविक सहमति साबित नहीं होती, तब तक प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ना मुश्किल दिख रहा है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

छत्तीसगढ़ के श्रममंत्री के घर में बालको की यह कैसी रणनीति

वेदांता के एथेना थर्मल सिंधीतराई से ग्राउंड रिपोर्ट

वेदांता के खिलाफ हुए ओडिसा के आदिवासी