पर्यावरण संरक्षण के लिए ओडिशा हाईकोर्ट का ऐतिहासिक कदम
प्रशासनिक जवाबदेही और सामाजिक भागीदारी से ही बचेगा हमारा भविष्य
हाल ही में ओडिशा हाईकोर्ट ने पर्यावरण सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा और दूरगामी असर डालने वाला फैसला सुनाया है। इस फैसले के अनुसार अब राज्य के सभी जिलाधिकारियों को अपने-अपने क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी गतिविधियों पर नियमित रूप से रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इस पहल का उद्देश्य है पर्यावरणीय नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना और स्वच्छता तथा पारिस्थितिक संतुलन को प्राथमिकता देना।
क्यों है यह फैसला अहम?
पिछले कुछ वर्षों में हम लगातार देख रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अवैध वनों की कटाई जैसे मुद्दे तेजी से बढ़े हैं। खासकर शहरी और औद्योगिक इलाकों में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी आम हो गई है। ऐसे में कोर्ट का यह निर्देश प्रशासनिक तंत्र को एक स्पष्ट जवाबदेही के दायरे में लाता है।
हाईकोर्ट की खंडपीठ – मुख्य न्यायाधीश सुभाषिस तालापात्रा और न्यायमूर्ति सवित्री रथ – ने कहा कि अब जिला स्तर की पर्यावरण समितियों को 15 दिनों के भीतर सक्रिय किया जाए और हर 3 महीने पर रिपोर्ट जमा करना अनिवार्य होगा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिलेगा सम्मान कोर्ट ने एक और सराहनीय बात कही –
जो कि इस फैसले को और भी खास बनाती है। उन्होंने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि जो सामाजिक कार्यकर्ता या संगठन पर्यावरण और स्वच्छता के क्षेत्र में सक्रिय हैं, उन्हें पहचानकर सम्मानित किया जाए और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
यह न केवल सरकारी-गैर सरकारी सहयोग को प्रोत्साहित करता है, बल्कि आम लोगों में भी पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और भागीदारी का भाव पैदा करता है।
लापरवाही पर सख्त चेतावनी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई अधिकारी इन आदेशों की अनदेखी करता है या रिपोर्ट प्रस्तुत करने में लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इससे यह संदेश साफ जाता है कि अब पर्यावरणीय मसलों पर कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
अब आगे क्या?
यह फैसला एक मॉडल के रूप में सामने आया है
, जिसे अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जा सकता है। पर्यावरण की रक्षा कोई अकेले सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें समाज, प्रशासन और हर एक नागरिक की भूमिका जरूरी है।
यह ब्लॉग पोस्ट उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर हैं। ओडिशा हाईकोर्ट का यह कदम हमें सिखाता है कि जब प्रशासनिक इच्छाशक्ति और सामाजिक भागीदारी एक साथ मिलती है, तो सकारात्मक बदलाव जरूर आते हैं।
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