लांजीगढ़ में भी भोपाल गैस कांड़ जैसा हादसा होगा, क्या तब ओडिसा सरकार वेदांता के खिलाफ एक्शन लेगी
जहरीले पानी से सुबह के दो बजे जो कहर ढाया, फसल तबाह, पांव पानी में रखा तो पड़ गए छाले
लांजीगढ़ ओडिसा
अभी दिन निकलने में वक्त था। लेकिन लांजीगढ़ वेदांता कंपनी के साथ लगते गांव बनपड़ा के निवासी सोम साहूं की नींद अचानक एक आवाज से के साथ खुल गई। क्या हुआ, वह जानने के लिए झोपड़ी से बाहर आए। लेकिन कुछ नजर नहीं आ रहा था।
तभी उनका पांव पानी में पड़ गया। यह क्या, देखते ही देखते उनके पांव में इतनी खुजली हुई कि दिन निकलने तक वह पांव को खुजाते रहे। सुबह जब रोशनी आई तो देखा कि गंदे पानी की वजह से पांव में छाले पड़ गए हैं।
सोम साहूं यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि हुआ क्या? उन्हें लग रहा था कि शायद उनका पांव किसी कैमिकल पर पड़ गया। लेकिन सुब होते होते जब कई आदिवासियों ने इसी तरह की शिकायत की तो पता चला कि माजरा क्या है?
वेदांता कंपनी के तालाब का जहरीला पानी बाढ़ की तरह गांवों में आ गया। इससे कम से कम दो हजार एकड़ फसल बर्बाद हो गई। 20 से अधिक लोगों को त्वचा संबंधी रोग हो गए।
आखिर शनिवार की रात हुआ क्या था?
यह जानने के लिए जब गांव का दौरा किया तो पता चला कि वेदांता कंपनी लांजीगढ़ का एक तालाब है। इसमें बाक्साइड युक्त गंदा पानी जमा रहता है। तेज बरसात की वजह से तालाब ओवरफ्लो हो गया। तालाब के किनारे टूट गए। इस वजह से गंदा पानी बाढ़ बन कर गांवों में फैल गया।
पानी इतना जहरीला था कि जिस भी किसी की त्वचा से लग गया, वहां खुजली हो गई। बाढ़ के इस जहरीले पानी से फसल बर्बाद हो गई।
कंपनी का एक भी कर्मचारी आदिवासियों की सुध लेने नहीं आया
आदिवासियों ने बताया कि कंपनी की ओर से एक भी कर्मचारी उनकी सुध लेने नहीं आया। सुबह होते ही जब हो हल्ला मचा तो कांग्रेस विधायक सागर चरण दास मौका मुआयना करने आए। उन्होंने बताया कि कंपनी का जहरीले पानी ने कहर ढाया है। किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए। इसके बाद अधिकारी भी मौके पर आए। लेकिन कंपनी की ओर से किसी ने भी इस समस्या पर कुछ नहीं बोला।
वेदांता चेयरमैन की करनी और कथनी में अंतर
वेदांता के चेयरमैन अपने फेस बुक पेज पर खूब उत्साहवर्धक व प्रेरक बातें लिखते हैं। अभी हाल में उनकी कंपनी ने जांबिया के साथ तांबे को लेकर समझौता भी किया। कंपनी के चेयरमेन ने वहां बोला, तरक्की करना गलत नहीं है। लेकिन अनिल अग्रवाल यह बोलते हुए भूल गए कि इस तरक्की की कीमत कोई न कोई चुकाता है।
वेदांता के चेयरमैन की करनी और कथनी में कितना अंतर है। इसका अंदाजा
वेदांता की लांजीगढ़ में एल्मूनियम रिफाइनरी से लगाया जा सकता है।
कंपनी के जहरीले पानी से आस पास के दस से भी अधिक गांवों में कहर ढादिया है। लेकिन इसके बाद भी कंपनी के अधिकारी यहां आदिवासियों की सुध लेने नहीं आए हैं। उन्हें इस बात की चिंता ही नहीं कि उनकी गलती कि वजह से हजारो एकड़ फसल तबाह हो गई। सैकड़ों ग्रामीणों को त्वचा के रोग हो गए। पशुओं की मौत हो गई। लेकिन इकसे बाद भी कंपनी को इसकी चिंता ही नहीं है।
कंपनी को मनमानी का पूरा अधिकार
कहना गलत नहीं होगा कि लांजीगढ़ में कंपनी को मनमानी करने का पूरा अधिकार है। आदिवासियों की जान की कीमत कंपनी के लिए कुछ भी नहीं है।
ओड़िसा में कई जगह जम कर बरसात हो रही है। इस वजह से रिफाइनरी के आस पास बरसाती पानी जमा हो गया। अब यह गंदा और प्रदूषित पानी गांवों में बाढ़ की वजह बन रहा है।
बिंदल गांव में तो इस पानी ने कहर ढहा दिया। यहां कई आदिवासियों के झोपड़े पानी में बह गए हैं। प्रदूषित पानी घरों में घूसने से वहां रखा खाने पीने का सामान खराब हो गया है। हद तो यह है कि इस पर भी आदिवासियों को कोई बोलने नहीं दे रहा है।
आदिवासियों ने बताया कि यदि वह कंपनी का विरोध करते हैं तो उन्हें डराया, धमकाया जाता है। इसलिए वह चुप होने पर मजबूर है। विकास की कीमत कैसे आदिवासी चुका रहे हैं। यह देखना है तो इस गांव में आकर देखना चाहिए।
हालांकि बुरे हालात से दो चार हो रहा यह अकेला गांव नहीं है। इस रिफाइनरी के साथ लगते हर गांव की यही स्थिति है। इस पर भी ओडिसा का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोई कदम नहीं उठाता है।
आदिवासी कुछ बोले तो शरारती तत्व बता कर चुप करा दिया जाता है
गांव के लोगों की आवाज यूं ही दब कर रह जाती है। उनकी आवाज की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।
उन्हें कभी शरारती तत्व तो कभी कंपनी विरोधी करार दे दिया जाता है।
कारपोरेंट कंपनियां किस तरह से प्राकृतिक संशाधनों का दोहन कर रही है। किस तरह से वहां रहने वाले लोगों के लिए परेशानी पैदा कर रही है। इस ओर सरकार, सिस्टम और न्यायपालिका शायद ही कभी ध्यान देती हो।
वेदांता की वजह से जिस तरह से गांव के लोग नरकीय जीवन जीने पर मजबूर है, इससे कंपनी के सोशल कारपोरेट रिस्पांसबिल्टि पर भी सवालिया निशान लग रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कंपनी के चेयरमैन अनिल अग्रवाल नैतिकता, सभी के समान विकास, रोजगार व महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं। लेकिन अपनी फैक्टरी के आस पास वह अपनी इन बातों को लागू कराने की दिशा में कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। तभी तो यहां के ग्रामीण परेशान है। वह जिंदगी और मौत से हर रोज दो चार हो रहे हैं।
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