जमकानी : वेदांता की मनमानी

निहत्थे व निरीह ग्रामीण अंतरराष्ट्रीय कंपनी वेदांता के लिए क्या खतरा हो सकते है?


इनके पास बैठने को कुर्सी नहीं। काम न किया तो शायद झोपड़ी में चूल्हा भी न जले। एक दम शांत। अनिश्चिताओं से डूबे। पता नहीं क्या होगा? कोई बात सुनेगा भी या नहीं। हर रोज उगते सुरज के साथ एक उम्मीद जगती है। शाम होते ही यह उम्मीद भी खत्म। फिर नया दिन...।



नई उम्मीद। जमकानी के यह ग्रामीण उम्मीद और नाउम्मीद में

उलझ कर रह गए हैं। वह मांग क्या रहे? बस इतना भर ही तो कि उनकी अधिग्रहण की गई जमीन का उचित मुआवजा। रहने को ठीक सा घर दे दीजिए। लेकिन वेदांता कंपनी को उनकी यह छोटी सी मांग भी नागावार गुजर रही है।





यह ग्रामीण यहां एक माह से बैठे हैं। आगे भी बैठ रहेंगे। रास्ता भी क्या है? यहां मैं एक युवा नौजवान से मिला। बेहद शांत और मिलनसार यह युवा ( कंपनी का डर इतना है कि नाम छापने से प्रदर्शनकारियों ने मना किया है) मेरे से पूछता है, हमारा क्या होगा? मेरे पास इस छोटे से सवाल का कोई जवाब नहीं था।


यह युवा ग्रेजुएट है। मैं इस युवा को बहुत ध्यान से देखता हूं। उसके जज्बात समझने की कोशिश करता हूं। कुछ देर के लिए मैं खुद भी भावुक हो जाता हूं। अपने प्रोफेशन के विपरीत।


यहां एक नहीं कई युवा है। जो वेदांता में काम करते थे। बहुत कम वेतन पर। लेकिन ओडिसा में गरीबी इतनी है कि थोड़े से पैसे से भी बसर हो जाती थी। जब से ग्रामीणों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया।


इन युवाओं को भी वेदांता मैनेजमेंट ने नौकरी से बर्खास्त कर दिया।


प्रदर्शनकारी ग्रामीणों को हटाने के लिए यहां लगातार तरह तरह की कोशिश हो रही है। कभी पुलिस का दबाव बना कर तो कभी कोर्ट कचहरी में केस डाल कर। ग्रामीण फिर भी हटने को राजी नहीं है।


उठें भी कैसे? यहां से उठेंगे तो जाएंगे कहां? झोपड़ी, जो खाली है। जहां न खाने को कुछ न पहनने को।

प्रदर्शनकारियों में एक महिला ने बताया कि हम तेंदू पत्ता को तोड़ कर बेचते थे। मेरा काम चल जाता था। लेकिन अब पहाड़ की खुदाई कर दी। रास्ते बंद कर दिए। मैं अब पहाड़ पर नहीं जा पाती। कहां से तेंदू पत्ता लेकर आए।




माइनिंग की वजह से अब जमकानी और इसके पास लगने वाले हाट बजार भी दूर चले गए हैं। इस प्रदर्शनकारी महिला ने बताया कि वहां तक कैसे जाउं। आप बताए।


यह 15 अगस्त का दिन था, दिल्ली के आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। मैं जमकानी में वेदांता की माइनस से ठीक 700 मीटर की दूरी पर प्रदर्शकारियों के बीच बैठा था। मैं सोच रहा था। आजाद कौन हुआ? यह आजादी किसके लिए है?


प्रदर्शनकारियों ने बताया कि हम अपने बच्चों को अपराधी बनते हुए नहीं देखना चाहते। हम उनके हाथ में काम देखना चाहते हैं। काम नहीं होगा तो वह गलत रास्ते पर चल सकते हैं। हम अपने बच्चों को बचाना चाहते हैं।


इधर प्रदर्शनकारी ने बताया कि प्रदर्शन से पहले उन्होंने सुदंरनगर के प्रशासनिक अधिकारी को एक ज्ञापन दिया था, तब उन्होंने अधिकारी से बातचीत की। उन्हें बताया कि वह प्रदर्शन पर क्यों जाना चाह रहे हैं। इस बातचीत में जब उन्होंने बताया कि किस तरह से वेदांता कंपनी उनके साथ किए गए वादे भी पूरे नहीं कर रही है। 



इस प्रदर्शनकारी ने बताया कि अधिकारी ने बस इतना कहा कि कंपनी को अपना वादा पूरा करना चाहिए था। जब उन्होंने सवाल उठाया कि आप ते अधिकारी है, आपका हस्तक्षेप करना चाहिए। इस पर अधिकारी लंबी चुप्पी साध गए थे।


यह इलाका ओडिया का एक छोर है। ऐसा लगता है कि राजनेताओं को भी इनकी चिंता नहीं है।



मेन स्ट्रीम मीडिया के लिए यह प्रदर्शन कोई खबर नहीं है। एक दो बार यू ट्यूबर प्रदर्शन को कवर करने आए। लेकिन अब वह भी नहीं आ रहे हैं। तो इनकी आवाज दिल्ली तो क्या ओडिया की राजधानी भुवनेश्वर तक भी शायद ही पहुंचे।




इधर प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए कोर्ट में एक अपील कंपनी की अोर से दायर की गयी। इस पर कोर्ट का निर्णय आया है। इसमें कोर्ट ने अस्थायी आदेश में कहा की प्रदर्शनकारी कंपनी के वाहनों व कर्मचारियों को नुकसान नहीं पहुंचाएगे।




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