रायगढ़ा ओडिसा
हजारों आदिवासी। उनकी अपनी भाषा। अपनी बोली। और अपनी जुबान। जो मेरे जैसे चंडीगढ़ से आए पत्रकार के लिए समझ से परे थी। लेकिन जज्बात तो हमारे साझे हैं। वह मैं समझ पा रहा था।
वह क्या बोल रहे थे?क्या चाह रहे थे? क्यों चाह रहे थे? सब कुछ मेरी समझ में आ रहा था? मैं देख रहा था, उनकी आंखों। उनके चेहरे को। चेहरे पर चिंता, रोष तकलीफ
और किसी भी हद तक गुजर जाने का जुनून।
पारंपरिक पोशाक। कुछ के हाथ में पारंपरिक वाद्य यंत्र। यह लोग नियमगिरी पहाड़ी को बचाने के लिए आदिवासी दिवस पर एकजुट हुए थे।
आंदोलन तो यह अर्से से चला रहे हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इनके पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा पर नजर तो सदियों से बाहर के लोगों की रही है। इसलिए इनआदिवासियों को दो स्तर पर लड़ना पड़ रहा है।
एक अपनी जीविका के लिए। दूसरा अपना पहाड़, अपनी प्राकृतिक, जल जंगल और जमीन बचाने की जद्दोजहद। दोनो ही मोर्चों पर यह लंबे अर्स से लड़ रहे हैं। बिना थके। बिना डरे।
इस बार वेदांता कंपनी की नजर नियमगिरी की पहाड़ियों पर है। इन पहाड़ियों में बाक्साइट है। कंपनी इसे निकाल कर एल्मुनियम बनाना चाह रही है। आदिवासियों को कहना है कि खुदाई से पहाड़ खत्म हो जाएंगे। इसके साथ ही जंगल भी और जल भी। जहां जहां खुदाई हुई, वहां वहां न पहाड़ बचा, न जंगल और न ही जल। कई ऐसी जगह है, जहां पहले निर्मल जल बहता था,अब यह पानी मटमैला हो गया है।
नियमगिरी में भी कंपनी खुदाई करना चाह रही है। आदिवासी इसके लिए तैयार नहीं है। आदिवासियों को डराया गया। धमकाया गया। पुलिस केस भी बनाए गए। आदिवासी डटे हुए हैं।
कार्तिक मांझी स्थानीय आदिवासी नेता नियमगिरी आंदोलन से जुड़े हुए हैं, उन्होंने बताया कि हम मर जाएंगे,लेकिन पहाड़ नहीं छोड़ेंगे। कुछ भी हो जाए। हम पहाड़ पर कंपनी की मशीन नहीं चलने देंगे।
कार्तिक माझाी की तरह यहां हर आदिवासी इसी सोच से काम कर रहा है।
नौ अगस्त को ओडिसा के रायगढ़ा जिले में पांच हजार से ज्यादा आदिवासी जल जंगल जमीन बचाने के लिए जुटे। डीसी के माध्यम से सीएम के नाम ज्ञापन सौंपा।
रायगढ़ा व काली हांडी की सिजिमाली, कुटरूमाली समेत कई पहाड़ियां वेदांता, अड़ाणी और दूसरी खनन कंपनियों को सौंप दी गयी है। इन पहाड़ियों में आदिवासी की जिंदगी बसती है।
वह पहाड़ बचाने के लिए जी जान से जुटे हुए है। विश्व आदिवासी दिवस पर भी अपनी इस मांग को लेकर वह रायगढ़ा में जुटे थे। 23 जून को भुवनेश्वर में आयोजित बैठक में नेशनल अलायंस ऑफ पिपुल्स मुवमेंट संगठन ने नौ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर कार्यक्रम करने का ऐलान किया था।
ओड़िसा के जाने माने पर्यावरणविद प्रफूल सामंतरा को बनाया गया आदिवासियों को जल जंगल जमीन बचाने के लिए एकजुट होना ही होगा।
कार्यक्रम में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रफुल्ल सामंतरा, समाजवादी दलित नेता और नियमगिरि सुरख्य समिति के सलाहकार लिंगराज आजाद, कार्तिक माझी ने संबोधित किया।
हम आवाज उठाते हैं तो लगा दी जाती है देशद्रोह की धारा :प्रफुल्ल सामंतरा

यह क्रम तब से और ज्यादा तेज हो गया,जब से नियमगिरी की पहाड़ियों को वेदांता ने बाक्साइट की खुदाई के लिए लिया है।
कार्यक्रम में मांग की कि प्रदेश में खनन कंपनियों की मनमानी पर रोक लगनी चाहिए। जिस खनन से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, उसे बंद किया जाना
चाहिए।
वक्ताओं ने बताया कि क्योंकि 24 साल बाद ओड़िसा में सरकार बदली है। इस वक्त बीजेपी की सरकार है। सीएम . भी आदिवासी समुदाय से हैं। लिहाजा वह आदिवासियों की पीड़ा को समझ कर उनके साथ इंसाफ करेंगे।
सीएम को संबोधित करते हुए ज्ञापन में लिखा
ओड़िसा में आबादी का एक चौथाई हिस्सा आदिवासी है। उन्हें अपनी नई सरकार से बहुत उम्मीद है। ओड़िसा में हिराकुंड जलाश्य से लेकर रायकेला स्टील प्लांट,किलिंगनगर और इससे आगे तक खनन क्षेत्र की वजह से आदिवासी अपने मूल स्थान से विस्थापित होने को मजबूर हो रहे हैं। उन्हें सम्मान पूर्वक जीने से वंचित किया जा रहाा है। उनके आजिविका के साधन छीने जा रहे हैं। इस समाज की पहचान को छीनने की कोशिश हो रही है।ओड़िसा में कोयला, बाक्साइट, क्रोम, एल्मूनियम बनाने के संयंत्र चल रहे हैं। खनिजों को निकालने के लिए सैकड़ों खाने प्रदेश में चल रही है। फिर भी यह प्रदेश गरीब बना हुआ है।
युवाओं को रोजगार क्यों नहीं?
प्रदेश के युवाओं के लिए कोई रोजगार नहीं है। युवतियों और महिलाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। आदिवासियों को आजीविका के लिए प्लायन करना पड़ रहा है। जंगलों का विनाश हो रहा है। इसका असर आदिवासियों व किसानो पर पड़ रहा है। खनन की वजह से नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है।
पारंपरिक ठिकाना खोना पड़ेगा वनवासियों को
जंगल खत्म हो रहे हैं। इसका असर वनवासियों पर पड़ रहा है। उन्हें अपना पारंपरिक ठिकाना खोना पड़ रहा है।
हमारा ओडिशा राज्य असंगठित हो जाएगा, एक करोड़ से अधिक आदिवासी और पारंपरिक वन निवासी अपनी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सुरक्षा खो देंगे और सम्मान के साथ जीने का रास्ता खो देंगे।
आने वाले दिनों में विस्थापन का मुद्दा गंभीर संकट पैदा करता रहेगा और मानवाधिकारों एवं संवैधानिक अधिकारों को गंभीर रूप से कमजोर करता रहेगा। पिछले दो दशकों में पुरानी सरकार के दौरान काशीपुर और केलिंग शहर में उद्योग और खनन के लिए 16 लोग शहीद हुए थे।
यह खूनी विकास प्रक्रिया आने वाले दिनों में राज्य की आदिवासी अस्थिरता और कृषि अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगी और कई नए गरीबी क्षेत्रों का निर्माण करेगी, जिनके लागू होने पर शोषण बढ़ेगा और लाखों ग्रामीण असामयिक मौत के शिकार हो जाएंगे।
खनन पट्टों में नियम ताक पर
नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने 2015 से खनन पट्टों की नीलामी प्रक्रिया में संवैधानिक कानूनों और विनियमों का उल्लंघन किया है। खनिज (नीलामी) नियम 2015, संविधान के अनुच्छेद 244 और अनुच्छेद 5, पेसा, वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 41 के अनुसार, आदिवासी क्षेत्रों की ग्राम सभा की सहमति के बिना भूमि और जंगल, खदानें और पानी का हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है। लेकिन इन कानूनों और विनियमों के उल्लंघन के कारण, आदिवर कोरापुट जिले, मकरखंडी जिले और क्योंझर जिले के माली पर्वत, भोवा, सिलिमाली, कुटुरमाली, केटामेटा, वलबाग, कार्लापाल और मिइपाडा जंगलों में खदान रिसाव अवैध और असंवैधानिक है।
बॉक्साइट, लौह अयस्क, मैंगनीज, क्रोम, कोयला जैसे सीमित खनिज संसाधनों के संरक्षण के साथ भविष्य के लिए संरक्षण नीति बनाने की आवश्यकता है। पहाड़ों में बाक्साइट, लौह अयस्क सहित सभी प्राकृतिक संसाधन बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए जलवायु परिस्थितियों और आदिवासी अधिकारों के लिए खनिज विकास की नीति को पूरी तरह से त्यागने की जरूरत है।
जंगल बचाने को लड़ रहे आदिवासी
रायगढ़ा-कालाहांडी जिले में 'नियमगिरि समिति', 'खंडुआल माला स्थायी सुरक्षा समिति' कंपनी और राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपना संघर्ष जारी रखे हुए हैं। कोरापुट में उन्होंने बॉक्साइट खनन का विरोध किया माली पर्वत की 36 धाराओं द्वारा संरक्षित जंगलों और कृषि को दरकिनार कर इन पहाड़ियो को खनन के लिए दिया जाने की कोशिश हो रही है। इसे बचाने के लिए आम आदिवासी ' सुरक्षा समिति' बनाकर लड़ रहे हैं।
काशीपुर के सिजिमाली (टिकिमला), कुटुमाली क्षेत्र में मां मां माटी माली संक्रांति मंच वेदांत और अडानी कंपनियों को खदानें पट्टे पर देने का विरोध कर रहा है। सुंदरगढ़ जिले के डालमिया में 70 वर्षों से प्रदूषण और खनन के शिकार हजारों आदिवासी इसके विस्तार में पुनर्वास का विरोध कर रहे हैं! जगतसिंहपुर जिले के डिंकिया इलाके में, जिंदल कंपनी का विरोध करने वाले आदिवासियों का पुलिस और सरकारी गुंडों ने दमन, अत्याचार और गिरफ्तारियां की हैं। ज्ञापन में मांग की कि आदिवासी मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ओडिशा की नई सरकार सबसे पहले राज्य के प्राकृतिक संसाधनों पर ध्यान देगी
खनन कार्यों को रोकने के लिए कंपनियों को अवैध रूप से दी गई खदानें, जमीनें
पट्टा रद्द करें. ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना चल रही खनन तुरंत बंद होगी। इनका पट्टा भी रद्द किया जाए।
वन अधिकार अधिनियम 457 को ठीक से लागू किया जाना चाहिए और सभी आदिवासी और पारंपरिक वन निवासियों को ग्राम सभा के संबंध में उनके व्यक्तिगत और सामूहिक वन अधिकारों के लिए मान्यता दी जानी चाहिए।
राज्य गरीब क्यों है?
पिछले 64 वर्षों के दौरान जंगल और जमीन पर निर्भर विभिन्न परियोजनाओं की घोषणा आदिवासियों सहित ग्रामीणों के लिए जबरन की गई है। लोगों को इंसाफ मिले,इसके लिए राज्य में एक स्थायी सशक्त संवैधानिक आयोग का गठन किया जाए।
प्रदर्शनकारियों की जमीन जब्त करने के नाम पर गरीब, लोगों को बेदखल न किया जाए। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को सही तरीके से लागू कर गरीब आदिवासियों का उनकी जमीन वापस की जाए।
टिप्पणियाँ