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जमकानी प्रदर्शन:वेदांता मैनेजमेंट कीचड़ फैला ग्रामीणों को हटने पर मजबूर करने की कोशिश में जुटा   कोर्ट का ऑर्डर हाथ में अाते ही जमकनी माइंस में वेदांता का स्थानीय मैनेजमेंट अब मनमानी पर उतर आया है। यहां लगातार बरसात हो रही है। क्योंकि कोयले की खदान यहां है। इस वजह से सड़क पर भारी मात्रा में कोयले की डस्ट फैली रहती है। बरसात के पानी से डस्टकीचड़ में तब्दील हो रही है।  वेदांता के ट्रक अब इस कीचड़ से गाड़ी को तेज गति से निकालते हैं। जिससे कीचड़ फैल कर प्रदर्शनकारियों के नजदीक पहुंच जाए। इस तरह से ग्रामीणों को हटाने की कोशिश हो रही है। कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रदर्शनकारी वेदांता कंपनी के ट्रक और काम करने वालों को रोकेंगे नहीं। प्रदर्शनकारी इस आदेश की पालना कर रहे हैं।  वह माइनस से करीब 600 मीटर की दूरी पर बैठे हैं। ट्रकों की आवाजाही हो रही है। लेकिन इस ऑर्डर की आड़ में कंपनी का स्थानीय मैनेजमेंट अब तानाशाह बनने की कोशिश कर रहा है। प्रदर्शनकारियों को परेशान करने की कवायद की जा रही है।  ट्रकों के पहियों के साथ कीचड़ उछल कर कभी प्रदर्शनकारियों के मुंह तो कभी उनके...
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जमकानी: कोल माइनस से ट्रक चला अपनी जीत को पुख्ता करने में जुटा वेदांता प्रबंधन यह जमीन उनकी थी। कभी पहले। घर उनके थे। आंगन और पेड़ उनके थे। अब नहीं। अब वह विस्थापित है। जमीन पर कोई हक नहीं। खेत से विस्थापित होते ही हाथ से कुदाल छीन ली। सिर से छत को छीन लिया गया।  विस्थापन की त्रास्दी यदि महसूस करनी है, तो जमकानी आना होगा। यहां बैठा एक एक प्रदर्शनकारी इस त्रास्दी को ब्यां कर रहा है। इनकी मांग इतनी भर है कि सिर को एक छत और हाथ का कोई  एक काम दे दीजिए।  लेकिन यह मांग वेंदाता कंपनी, सिस्टम और सत्ता के लिए बहुत बड़ी है। जिसे वह पूरा नहीं करना चाहते। जिनकी जमीन को खनन के लिए लिया गया, उन्हें यहां से दूर हटाना चाहते हैं।  एक माह से भी ज्यादा समय हो गया, वह यहां बैठे हैं। अपनी मांगों को लेकर। विरोध जताने के बस कंपनी के ट्रकों को रोका था। लेकिन कंपनी कोर्ट में चली गयी तो ऑर्डर कंपनी के  हक में आ गया।      कोर्ट के आदेश के बाद जमकानी कोल माइनस से अब वेदांता के ट्रकों की आवाजाही शुरू हो गई है। ऑर्डर की कापी हाथ में आते ही कंपनी के स्थानीय प्रबंधन ...
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  वेदांता ने धवस्त किया एल्मूनियन रिफाइनी प्लांट, विरोध में एकजुट हुए लोग कोरबा छत्तीसगढ़ कोरबा में 1976 में स्थापित किए गए एल्मूनियन रिफाइनी प्लांट को वेदांता ने बंद कर दिया है। यहां कार्यरत एक हजार के करीब कर्मचारियों को कंपनी ने अलग अलग यूनिट में समायोजित कर दिया है। बताया गया कि यहा रिफाइनरी पुराने तरीके का थी। इस तरह की एल्मूनियन प्लांट पूरे विश्व में बंद हो गए हैं। इसलिए इसे भी बंद कर दिया गया। इसलिए किया गया बंद पुरानी रिफाइनरी की जगह अब नया सेल हाउस बनाया गया। इसमें लिक्विड एल्मूनियम बनना था। सेल उस जगह को बोला जाता है, जहां एल्मूना बनता है। जिसे सेल हाउस में गलाया जाता है। इससे लक्विड सोलडर बेस बनता है। पुराने प्लांट में जो एल्मूना बनता था, वह नए सेल हाउस में प्रयोग नहीं हो पाता था। इसलिए रिफाइनरी बंद करनी पडी। वेदांता ने इस रिफाइनरी को बंद करने के लिए सभी युनियन से बातचीत की। इसके आश्वासन के बाद ही रिफाइनरी को खत्म किया गया। तो फिर विवाद क्या है होना यह चाहिए था कि कोरबा में कंपनी एल्मूनियम रिफाइनरी प्लांट लगाती। लेकिन रिफाइनरी लगायी गयी लांजीगढ़ में । अब बाल्को मा...
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  जमकानी : वेदांता   की   मनमानी निहत्थे व निरीह ग्रामीण अंतरराष्ट्रीय कंपनी वेदांता के लिए क्या खतरा हो सकते है? इनके पास बैठने को कुर्सी नहीं। काम न किया तो शायद झोपड़ी में चूल्हा भी न जले। एक दम शांत। अनिश्चिताओं से डूबे। पता नहीं क्या होगा? कोई बात सुनेगा भी या नहीं। हर रोज उगते सुरज के साथ एक उम्मीद जगती है। शाम होते ही यह उम्मीद भी खत्म। फिर नया दिन...। नई उम्मीद। जमकानी के यह ग्रामीण उम्मीद और नाउम्मीद में उलझ कर रह गए हैं। वह मांग क्या रहे? बस इतना भर ही तो कि उनकी अधिग्रहण की गई जमीन का उचित मुआवजा। रहने को ठीक सा घर दे दीजिए। लेकिन वेदांता कंपनी को उनकी यह छोटी सी मांग भी नागावार गुजर रही है। यह ग्रामीण यहां एक माह से बैठे हैं। आगे भी बैठ रहेंगे। रास्ता भी क्या है? यहां मैं एक युवा नौजवान से मिला। बेहद शांत और मिलनसार यह युवा ( कंपनी का डर इतना है कि नाम छापने से प्रदर्शनकारियों ने मना किया है) मेरे से पूछता है, हमारा क्या होगा? मेरे पास इस छोटे से सवाल का कोई जवाब नहीं था। यह युवा ग्रेजुएट है। मैं इस युवा को बहुत ध्यान से देखता हूं। उसके जज्बात समझ...
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 सुनिए, कुछ कह रहे हैं आदिवासी, भाषा न सही,  कम से कम इनके जज्बात ही समझ लीजिए  रायगढ़ा ओडिसा हजारों आदिवासी। उनकी अपनी भाषा। अपनी बोली। और अपनी जुबान। जो मेरे जैसे चंडीगढ़ से आए पत्रकार के लिए समझ से परे थी। लेकिन जज्बात तो हमारे साझे हैं। वह मैं समझ पा रहा था। वह क्या बोल रहे थे?क्या चाह रहे थे? क्यों चाह रहे थे? सब कुछ मेरी समझ में आ रहा था? मैं देख रहा था, उनकी आंखों। उनके चेहरे को। चेहरे पर चिंता, रोष तकलीफ और किसी भी हद तक गुजर जाने का जुनून। पारंपरिक पोशाक। कुछ के हाथ में पारंपरिक वाद्य यंत्र। यह लोग नियमगिरी पहाड़ी को बचाने के लिए आदिवासी दिवस पर एकजुट हुए थे। आंदोलन तो यह अर्से से चला रहे हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इनके पहाड़ों की प्राकृतिक संपदा पर नजर तो सदियों से बाहर के लोगों की रही है। इसलिए इनआदिवासियों को दो स्तर पर लड़ना पड़ रहा है।  एक अपनी जीविका के लिए। दूसरा अपना पहाड़, अपनी प्राकृतिक, जल जंगल और जमीन बचाने की जद्​दोजहद। दोनो ही मोर्चों पर यह लंबे अर्स से लड़ रहे हैं। बिना थके। बिना डरे।  इस बार वेदांता कंपनी की नजर नियमगिरी की ...
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         जामकानी: जिस आम के पेड़ के नीचे ग्रामीण               प्रदर्शन कर रहे हैं , कभी यहां उनके घर हुआ                 करते थे हरियाणा और पंजाब में उन गांवों को बेचिराग कहते हैं, जहां कोई नहीं रहता। ऐसे गांवों का रेवेन्यू दस्तावेजों में रिकॉर्ड रहता है। बस  नाम दे दिया जाता है बेचिराग गांव। गांच बेचिराग क्यों हो जाते हैं? कौन करता है, गांव के लोगों को उनकी जमीन से बेदखल।  मेरे मन में यह सवाल हमेशा उठता रहता था।  यह समझने में लिए मैं इन दिनों औड़िसा में हूं। यहां माइनिंग के लिए ग्रामीणों को बेदखल किया जा रहा है। ऐसा ही एक गांव है जामकानी। गांव को वेदांता की माइन के लिए  को उजाड़ दिया गया।  मैं   आज  यानी 28 जुलाई को  जामकानी में हूं। सुंदरगढ़ जिले के इस गांव में पहुंचने का रास्ता जोखिम भरा है। कोयले से लदे हजारों ट्रक, बार बार रफ्तार को रोक देते हैं। रेलवे ट्रक पर भी कोयला लदे वैगन दौड़ते नजर आते हैं। मैं सुबह ही कोरबा से ...