अन्नदाता माफ करना...
अफसोस। शर्मनाक। आप गांधी के सिद्धांत नहीं समझ पाए। आप भगत सिंह को भूल गए। क्यों? आप को जवाब देना होगा? आपने देश और किसान दोनों को धोखा दिया है। ... और अब आप जिम्मेदारी से बचना चाह रहे हैं। नहीं...। आप जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। 26 जनवरी को जो हुआ, इसमें किसान, देश की प्रतिष्ठा, विश्वास, भरोसा, आंदोलन, संघर्ष का नुकसान हुआ। क्योंकि एक ओर किसान थे। दूसरी ओर उनके बेटे। आपकी कुत्सित सोच ने बाप और बेटे को आमने सामने खड़ा कर दिया। आपको माफ नहीं किया जा सकता। जो जवान घायल है, उनके घर जाकर देखना। वह किसान परिवार से आते हैं। कथित किसान नेताओं, आपने किसान आंदोलन को खुद ही कुचल दिया। इतनी बुरी तरह से कि इस तरह का आंदोलन खड़ा होने में अब सालों लग जाएंगे।
आपके पास प्लान नहीं था। आप जिद पर अड़े थे। आप शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे। दिखाना चाहते थे अपनी ताकत। क्यों? क्योंकि आपको खुद पर यकीन नहीं था। आप को लगता था यह भीड़ यूं ही जुट गयी। इसका फायदा उठा लो। आपको नहीं पता आपने किसानों को कितना बड़ा नुकसान कर दिया। आपको पता ही नहीं था कि करना क्या है। आपके पास कोई प्लान नहीं था।
क्योंकि यदि प्लान होता तो आप तीन कानूनों को सस्पेंड करने की सरकार की बात मानते हुए आंदोलन को आगे बढ़ा सकते थे। लेकिन नहीं, आपने ऐसा नहीं किया। अगर आपको गांधी जी की समझ होती तो आप तुरंत सरकार की यह बात मानते। लेकिन आंदोलन खत्म न करते। उन्होंने एक मांग ली, आप भी उनकी एक मांग मान लेते। पर क्योंकि आपको ाखुद पर यकीन नहीं था। निश्चित ही आप नेता ही नहीं है। आप धरने पर बैठे किसानों को समझा ही नहीं सकते थे। यहीं वजह थी कि जब सरकार ने प्रस्ताव दिय तो आप में माद्दा नहीं था कि किसानों को समझा सके। इसलिए आप किसानों को समझाने की बजाय उनकी जिद के आगे झूक गए।
अब भी यदि आप में नैतिकता है तो तुरंत खुद को कानून के हवाले कर दो। क्योंकि जो हुआ अब उसकी भरपायी नहीं हो सकती। जिस तरह से गांधी ने असहयोग आंदोलन को चोरा चोरी की घटना के बाद वापस ले लिया था। ठीक इसी तरह से आप आंदोलन तुरंत वापस लें। क्योंकि यदि आप खुद को नैतिक रूप से इस कांड के जिम्मेदार मानते हैं तो आपको तुरंत यह कदम उठाना चाहिए। मुझे पता है आप ऐसा नहीं करेंगे। क्योंकि गांधी जी का रास्ता मुश्किल और संघर्ष का रास्ता है। जिसे अपनाने की बजाय आपको भागना ज्यादा उचित लगेगा।
आप भगत सिंह को भी नहीं मानते। क्योंकि भगत सिंह को यदि आपने ठीक से पढ़ा होता तो लाल किले पर जो हुआ, वह झंडा नहीं फहराया जाता। आप किसानों की लड़ाई लड़ रहे हो या धर्म की। आपको यह तय करना होगा। आपके आंदोलन में नौजवान भारत सभा समेत कई युवा साथी भगत सिंह से संबंधित किताबे पढ़ने के लिए उपलब्ध करा रहे थे। आपने यदि एक दो किताब भी पढ़ ली होती तो इस आंदोलन को भटकने से रोक सकते थे। पर आपका इरादा कुछ और था।
सरकार ने आपको मौका दिया। स्मार्ट एग्जिट का। आपने गंवा दिया। आज जिद पर अड़े थे। आपको पुलिस ने 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड की इजाजत दे दी। आपको लगा यह जीत है। बस वहीं प्वाइंट रहा, जिसे आप जीत समझ रहे वह सबसे बड़ी हार थी। जिन किसानों को आप तंबू में नहीं समझा पा रहे थे। सड़क पर उतरे वह किसान आपकी क्या बात मानते। नतीजा आपकी तनी गर्दन अब इतनी झुक गयी कि आप नजर तक नहीं मिला पा रहे हैं। आपके समर्थक आपको छोड़ कर वापस जा रहे हैं। आप उन्हें रोक नहीं पा रहे हैं। आप अकेले पड़ रहे हैं। पड़ ही जाना चाहिए। आप हो ही इसी लायक।
अफसाेस यह है कि आपने कृषि रिफार्म की भ्रूण हत्या कर दी। हरित क्रांति के बाद यह पहला मौका है, जब खेती किसानी कोे लेकर राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस शुरु हई थी। मैं आंदोलन में अपने वीडियो जर्नलिस्ट साथी सोनू चौधरी के साथ किसान नेताओं से बातचीत कर रहा था। समझने की कोशिश कर रहा था कि वह कृषि को लेकर क्या सोच रख रहे हैं। यहां मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि वीएम सिंह को छोड़ कर एक भी किसान नेता ऐसा नहीं मिला, जिसका विजन कृृषि रिफार्म को क्लियर हो। राकेश टिकैत मेरे माइक को देख कर बातचीत के लिए खासे उत्सहित थे, लेकिन पहले ही सवाल पर बिदक गए। तब सोनू भाई ने कहा कि इन्हें छोड़िए।
आप तीन कानूनों को खत्म करने की मांग कर रहे हो। आप एमएसपी पर कानून बनाने की मांग कर रहे हो। लेकिन आप के पास इस बात का जवाब ही नहीं है कि हरियाणा और पंजाब में गेहूं और धान का एमएसपी मिल रहा है। फिर पंजाब का किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है। हरियाणा का किसान बदहाल क्यों? यूपी में एमएसपी नहीं फिर भी वहां आत्महत्य की घटना कम क्यों? आप इस तथ्य की जड़ में जाए। आप मेेरी इस बात का यह मतलब नहीं निकालना कि मैं एमएसपी या तीनों कृषि कानूनों का समर्थक हूं। मैं न इनका समर्थक हूं न विरोधी। मैं किसान परिवार से हूं, एक असफल किसान हूं, एक पत्रकार हूं, इसलिए यह सवाल उठा रहा हूं। इसका जवाब खोजने की जरुरत है।
एमएसपी ने क्या किया? बिहार के चावल की तस्करी को बढ़ावा दिया। एमएसपी का फायदा किसानों से कहीं ज्यादा हरियाणा और पंजाब के राइस मिलर्स को हो रहा है। मोटा धान जितना किसान नहीं उगाते उसे कहीं ज्यादा धान कागजों में भ्रष्ट अधिकारी उगा देते थे। इसी तरह से गेहूं घोटाला हैं। अफसोस यह है कि इसमें कुछ किसान भी शामिल होते हैं। इस मसले पर मैं समय समय पर आवाज उठाता रहा हूं।
यहीं खेल बिजली व खाद की सब्सिडी का है। इसका फायदा किसानों को नहीं खाद कंपनियां व बिजली कंपनियों को होता है। किसान एमएसपी के चक्कर में कीटनाशक, पानी और खाद उगा रहा है। फिर चाहते है आप इस जहर को सरकार खरीद कर गरीब लोगों को पीडीएस के माध्यम से बांट दे। गलती आपकी और कैंसर का रोगी बने गरीब आदमी। जो आपके उगाए जहरीले चावल और गेहूं को खा रहा है।
किसान नेताओं को आपको यदि मौका मिले तो चंडीगढ़ मंडी में आना। यहां एमपी का गेहूं तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है। क्यों? उनका गेहूं देशी बीज से तैयार है। इसमें खाद नहीं डालते। इसमें खरपतवारनाशक अौर कीटनाशक नहीं डाला गया। तो हरियाणा और पंजाब का किसान ऐसा क्यों नहीं करता। वह कर सकता है? रामदेव गेहूं नहीं उगाता। उसका आटा 50 रुपए किलो बिकता है। फिर किसान ऐसा क्यों नहीं कर सकता।
पंजाब में आत्हत्या करने वाले किसानों पर जब मैं सीनियर पत्रकार इंद्रप्रीत का सहयोग कर रहा था तो हमें डेढ़ एकड़ का वह खुशहाल किसान मिला। उसकी खुशहाली का राज था,वह अपने डेढ़ एकड़ में गन्ना, सब्जी, दाल और गेहूं धान उगाता है। गन्ने का जूस निकाल कर बेचता है। पास ही उसकी पत्नी सब्जी बेचती है। खरीददार खेत से अपने सामने सब्जी तोड़ता है। किसान के दो बच्चे, अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। इस किसान पर कोई कर्ज नहीं है। औसतन आमदनी 15 सौ रुपए प्रति दिन थी।
किसानों की समस्याओं का समाधान मैं गांधी जी की दर्शनशास्त्र में देखता हूं। कुटीर उद्योग ही किसान, खेती, जल, जंगल और जमीन को बचा सकते हैं। किसान को तय करना है कि उसे खुद व्यापारी बनना है या व्यापारियों के हाथ में लुटना है। मुझे लगता है, आंदोलन के पहले चरण की विफलता के बाद अब किसान को तय करना होगा कि उन्हें आगे क्या करना है? बाजार का गुलाम बने रहना है या फिर खुद बाजार में उतर कर अपने उत्पाद बेचना है।
क्योंकि किसान नेता हो या सियासी नेता या बाजार हर कोई आपका कंधा इस्तेमाल करेगा अपनी कुटिलता के लिए...।
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