जय हनुमान राइस मिल घरौंडा का मामला:-

ज्यादा धान देने वाले इंसपेक्टरों पर डीएफएससी आखिर क्यों मेहरबान

डीएफएससी ने कहा, इंसपेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई के हेड क्वार्टर को भेजा पत्र

द न्यूज इनसाइडर करनाल


घरौंडा के 2 राइस मिलों द्वारा तय समय पर सरकार का चावल वापस न लौटाने के कारण डीएफएससी निशांत राठी द्वारा 16 अक्तूबर को मिलों को सील कर दिया, लेकिन इन मिलों को ज्यादा धान देने वाले जिम्मेवार इंसपेक्टरों के खिलाफ कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई। जहां डीएफएससी ने मिलों पर कार्रवाई की, वहीं दूसरी ओर जिम्मेवार इंसपेक्टरों पर मेहरबान हो गए। अगर ऐसा नहीं होता तो जिस प्रकार मिलों को सील करने की कार्रवाई की, उसी तेजी से इंसपेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हो जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। करीब एक माह का समय बीत जाने के बाद भी डीएफएससी इंसपेक्टरों को बचाने में लगे हुए है। स्थिति उस समय ओर गंभीर हो जाती है। जो बताने के लिए काफी है कि खाद्य आपूर्ति विभाग में कार्ररत कई अधिकारी किस प्रकार सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाने में योजना अनुसार काम कर रहे है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों अब तक इंसपेक्टरों पर कार्रवाई नहीं की गई।जिन मिलों को धान दिया गया, वो केवल घरौंडा की मंडी के अलावा अन्य मंडियों से भी दे दिया गया।

इन इंसपेक्टरों द्वारा लीज पर लिए गए मिलों को निर्धारित कोटे से ज्यादा धान दिया गया। जबकि लीज पर लिए गए मिलों को सिर्फ 40 हजार कि्वटल धान ही दे सकते है जबकि बिना लीज वाले मिल को  70 हजार किवंटल धान मिलिंग के लिए दिया जा सकता हैं। लेकिन इंसपेक्टरों द्वारा सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर 1 लाख 50 हजार किवंटल तक धान मिलों को दे दिया। ऐसा क्यों हुआ? क्या डीएफएससी ने इसकी जांच करवाई, अगर नहीं करवाई तो क्यों नहीं? नियमों को ताक पर रखकर मिलों को ज्यादा धान देने वाले इंसपेक्टरों पर क्यों डीएफएससी मेहरबान बने हुए है। इसके पीछे क्या कोई दवाब है? क्या मिल ही जिम्मेवार है? इंसपैक्टर क्यों नहीं? हालांकि डीएफएससी ने दावा किया कि संबंधित इंसपेक्टरों के खिलाफ हेड क्वार्टर को पत्र भेज दिया हैं। बावजूद इसके इनमें से एक इंसपेक्टर बड़े आराम से मंडी में सरकारी धान खरीदता रहा। ऐसा क्यों? सूत्रों से पता चला है कि डीएफएससी द्वारा मिल की पीवी कराई थी, जिसमें धान का स्टॉक पूरा दिखाया गया था। ऐसा क्या हुआ कि कुछ समय बाद स्टॉक कम पाया गया। जिससे डीएफएससी की भूमिका संदेह के घेरे में आ जाती है। सरकार को चाहिए कि मामले की जांच करवाई जाए। क्योंकि जब पीवी होती है तो उसकी वीडियोग्राफी करवाई जाती है। कई राइस मिलरों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि जो पीवी पहले कराई गई थी, उनकी जांच होनी चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।









जब फिजिकल वैरीफिकेशन हुई थी तो फिर कैसे कम हो गया स्टॉक

राइस मिल के संचालक गौरव कुमार ने डीएफएससी की कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा था कि फूड सप्लाई विभाग हरियाणा के आदेशा अनुसार दिसम्बर 2019 से लेकर जुलाई 2020 तक 3-4 बार सभी मिलों की स्टाक, माल की फिजिकल वैरिफिकेशन करवाई गई और अंतिम फिजिकल वैरिफिकेशन 10 जुलाई को हुई थी। जिसमें उनकी सभी मिल प्रमिसिज में धान व चावल का स्टॉक पूरा पाया गया था।




ये था मामला

डीएफएससी निशांत राठी ने घरौंडा के 2 राइस मिल इनमें जय हनुमान राइस मिल व एसएसजी फूड मिल को सील कर दिया था। क्योंकि इन मिलों द्वारा करीब 37 करोड़ का चावल सरकार को 15 अक्तूबर तक जमा करवाना था। लेकिन नहीं करवाई। जिस पर डीसी के आदेश पर 16 अक्तूबर को इन मिलों को सील कर दिया था ताकि नुकसान की भरपाई हो सके। डीएफएससी की कार्रवाई से नियमों की अनदेखी करने वाले मिल संचालकों में हड़कंप मच गया था।




वर्जन

डीएफएससी निशांत राठी ने बताया कि जिन इंसपेक्टरों ने घरौंडा के जय हनुमान राइस मिल व एसएसजी फूड मिल को कोटे से ज्यादा धान दिया था। उन इंसपेक्टरों के खिलाफ कार्रवाई हेतु हेड क्वार्टर को लिख दिया है। 




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