धान खरीद घोटाला: तय कोटे से ज्यादा धान लेने वाले मिलर्स पर मेहरबान क्यों मनोहर सरकार 
दिखावा भर रही फिजिकल वैरिफिकेशन, फूड माफिया को बचाने की हर स्तर पर की गयी कोशिश 
दा न्यूज इनसाइडर चंडीगढ़ 
फिजिकल वैरिफिकेशन दिखावा भर रही। सरकारी धान में घोटाले की तह तक टीम नहीं पहुंची। धान की जो कमी दिखायी गयी, वह घोटालेबाज मिलर्स को बचाने की एक कोशिश भर है। दूसरी ओर जो गड़बड़ी सरेआम हुई, सरकारी दस्तावेज में भी दर्ज है। इस पर विभाग चुप क्यों है? यह सवाल बड़ा है। क्योंकि यदि विभाग वास्तव में घोटाले की तह तक जाना चाहता है तो ज्यादा कुछ करने की जरुरत ही नहीं है। बस उन मिलर्स के खिलाफ ठोस कदम उठाए जिन्हें जिला मिलिंग कमेटी की ओर से तय किए धान के कोटे से ज्यादा धान दिया गया है। अकेले करनाल में ऐसे मिलर्स की संख्या बहुत ज्यादा है। इस बार प्रदेश में सरकारी धान खरीद में रिकार्ड तोड़ घोटाला हुआ। धान की गोस्ट प्रचेज हुई। भ्रष्टाचार मिटाओ मंच के अध्यक्ष अशोक ने इस बाबत पूर्व सीएम भूपेंद्र ङ्क्षसह हुड्डा, विभाग के मंत्री दुष्यंत चौटाला को एक पत्र लिख कर मांग की कि जिन मिलर्स को तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया, उनके  खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो मामले को लेकर एक पीआईएल कोर्ट में दायर की जाएगी। जिससे इस गड़बड़ी की तह में जाया जाए। अशोक ने बताया कि यह इसलिए जरूरी है क्योंकि सिर्फ इससे किसान की मेहतन पर डाका डल रहा है,बल्कि फूड माफिया गरीब के निवाले पर भी डाका डाल रहा है। इस माफिया को एक्सपोज करना जरूरी है। अन्यथा इस तरह का घोटाले होते ही रहेंगे। इस काम में मिलर्स आढ़ती और अधिकारी मिले हुए थे। यहीं वजह है कि इस घोटाले को दबाने की हर स्तर पर कोशिश हो रही  है। 

गड़बड़ी ऑनरिकार्ड तो फिर कार्यवाही से परेहज क्यों 
भ्रष्टाचार मिटाओ मंच के अध्यक्ष अशोक चौहान ने बताया कि जब यह अनियमितता ऑन रिकार्ड है, फिर सरकार कार्यवाही से परहेज क्यों कर रही है। तय कोटे से ज्यादा धान लेने वाले मिलर्स के खिलाफ कार्यवाही तो पहले ही दिन हो जानी चाहिए थी, इसके लिए तो किसी पीवी की जरूरत ही नहीं थी। क्योंकि धान खरीद का रिकार्ड तो निदेशालय तक जाता है। फिर इसकी ओर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। यह अपने आप में गंभीर सवाल है। जिसका जवाब तो सरकार को देना ही चाहिए। 
यहीं गड़बड़ घोटाले की शुरूआत है
जानकारों का कहना है कि यहीं वह चरण है, जहां से धान घोटाले की शुरूआत हुई है। क्योंकि जब जिला मिलिंग कमेटी ने प्रत्येक मिलर्स का धान का कोटा तय किया था, फिर इसे खाद्य आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टर ने अपने स्तर पर कैसे बढ़ा दिया। करनाल अनाज मंडी में ही इंस्पेक्टर समीर वशिष्ठ ने सारे कायदो को ताक पर रख कर इस अनियमितता की शुरूआत की। इसी तरह तरावड़ी, जुंडला, घरौंडा, इंद्री समेत सभी अनाज मंडी में तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया। 
तो अब क्या होना चाहिए 
जिन मिलर्स को तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया, पहले तो उनकी जांच होनी चाहिए। आखिर कैसे और किस आधार पर उन्हें अतिरिक्ति धान दिया गया। उनकी मिलिंग क्षमता क्या है? क्योंकि कई मिल तो  ऐसे है जो सी कैटागिरी में आते हैं, उन्हें भी इंस्पेक्टरों ने नवाज दिया।  यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि सरकार इसकी जांच कर लें तो पीवी की नौबत ही नहीं आएगी। घोटाले को अपने आप ही पता चल जाएगा।  
अतिरक्ति धान वापस लिया जाए और लगना चाहिए जुर्माना 
भ्रष्टाचार मिटाओ मंच के अध्यक्ष अशोक चौहान ने मांग की कि सरकार को चाहिए कि वह तुरंत उन मिलर्स से धान वापस लें, जिन्हें  जिला मिलिंग कमेटी की ओर से तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया। यदि वह धान वापस नहीं करते तो उन पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। क्योंकि ज्यादा धान लेने वाले राइस मिलर्स ने धान नहीं लिया, बल्कि यह धान की गोस्ट प्रजेजिंग है। जो किसान, सरकार और सरकारी फँड का गबन और धोखाधड़ी है। 
अब सरकार या तो जिला मिलिंग कमेटी खत्म करें, या ज्यादा धान लेने वाले मिलर्स की जांच करें
यदि इंस्पेक्टर को धान अलॉटमेंट करते हुए मनमानी ही करनी है तो फिर जिला मिलिंग कमेटी की जरूरत ही क्या है? फिर तो इंस्पेक्टर ही यह तय कर लें कि किस मिलर्स को कितना धान देना है। और यदि जिला मिलिंग कमेटी की जरूरत है तो फिर इसने जो अलॉटमेंट की इसकी अनेदखी कैेसे हुई? जिला मिलिंग कमेटी मिल की क्षमता, उसके प्रदर्शन को ध्यान में रख कर ही धान का कोटा तय करती है। यदि इंस्पेक्टर इसकी अनदेखी करता है तो फिर वह इसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए। 


सरकार गड़बड़ करने वालों से मिली हुई है: हुड्डा 
दूसरी ओर पूर्व सीएम और कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि यह रकार गड़बड़ करने वालों से मिली हुई है। इसलिए पीवी सही तरह से हो ही नहीं सकती। उन्होंने कहा कि  सरकार  ने चेहते मिलर्स को अनैतिक तरीके से लाभ पहुंचाया है। इस का खामिजाजा प्रदेश के धान उत्पादक किसानों को भुगतना पड़ा है। यह सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। अब जनता के बीच सरकार की पोल खुल चुकी है। 

भ्रष्टाचार मिटाओ के नारे का क्या हुआ 
जानकारों का कहना है कि एक ओर तो सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने का दावा करती है, दूसरी ओर सरेआम जो गड़बड़ी हुई इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है। यह गड़बड़ी सीएम मनोहर लाल के विधानसभा क्षेत्र में हुई है। फिर भी मामले की तह में जाने की कोशिश की बजाय इस पर लिपापोती ही हो रही है। जो अपने आप में सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता नजर रहा है। 
जो मामला विधानसभा में उठा, इसकी जांच इस तरह से होगी क्या
यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष राकेश ढुल ने सवाल उठाया कि धान गड़बड़ी पर सरकार ने सदन में बयान दिया था कि इसकी जांच होगी। यह बात सरकार की ओर से ऑन रिकार्ड बोली थी। लेकिन जांच हुई कहां? पहले तो पीवी ही सही तरह से नहीं हुई। दो बार पीवी की औपचारिकता की गयी। अब जो  धान कम दिखाया गया, वह कोई गड़बड़ नहीं है। स्टॉक कम दिखा कर पीवी टीम और विभाग ने एक तरह से गड़बड़ करने वाले मिलर्स को बचाने का काम किया है। क्योंकि यह कमी तो मान्य है। इसलिए मिलर्स के खिलाफ कार्यवाही बनती ही नहीं। अब जनता के बीच यह संदेश चला जाए कि सरकार धान घोटालो पर गंभीर है। इसलिए मीडिया में इस तरह का बयान जारी कर दिया गया है। ताकि यह घोटाला खुद खुद दफन हो जाए। 







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