पीवी करने वाले अधिकारियों की निष्ठा पर सवाल खड़े कर रहा पीडीएस का आ रहा चावल
द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो चंडीगढ़
यूपी के सीएम के इलाके से आ रहे हैं ट्रक
यूपी में पीडीएस का चावल लेकर आ रहे कई ट्रक तो यूपी के सीएम आदित्य नाथ योगी के क्षेत्र गोरखपुर से
आए हुए हैं। जिससे साफ हो रहा है कि फूड माफिया की जड़ कितनी गहरी है। यहीं माफिया पीडीएस से गरीबों के लिए सप्लाई होने वाले चावल को रास्ते में ही सस्ते दाम पर खरीद कर हरियाणा के मिल संचालकों को उपलब्ध करा रहा है। करनाल में जो चावल आ रहा है, वह भी यहीं माफिया मैनेज कर रहा है। माफिया के दलाल मिल संचालकों के संपर्क में हैं।
दो जगह घोटाला
यह घोटाला सिर्फ हरियाण की अनाज मंडियों में ही नहीं आ रहा है, बल्कि यूपी और बिहार में भी हो रहा है। हरियाणा की मंडियों में जहां मिलर्स खाद्य आपूर्ति विभाग के खरीद इंस्पेक्टर से मिल कर धान की फर्जी खरीद की है। दूसरी ओर यूपी और बिहार में पीडीएस का चावल जो कि केंद्र की ओर से गरीबों के लिए भेजा गया था। यह चावल डिपो तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में बिक रहा है। यह ठीक ठीक इसी तरह से हो रहा है, जिस तरह से करनाल में आटा घोटाला हुआ था। यह आटा गरीबों के लिए था। माल आटा मिल से आया भी नहीं था, करनाल के खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते डिपो संचालकों ने पात्र गरीबों के अंगूठे आटा डिलिवरी पर लगवा लिए थे।
जो पीवी का विरोध कर रहे थे, उनमें ही ज्यादातर मंगवा रहे पीडीएस का चावल
करनाल में जो मिलर्स पीवी का विरोध कर रहे थे, वहीं इसमें शामिल है। द न्यूज इनसाइडर टीम के पास करनाल के मिलर्स का धान खरीद के जो सरकारी दस्तावेज हैं, इसके मुताबिक जिन लोगों ने तय कोटे से ज्यादा धान लिया है, वहीं पीवी का विरोध कर रहे थे। यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष राकेश ढुल ने बताया कि जिस तरह से मिलर्स सरकारी धान से चावल बनाने की प्रक्रिया बंद करने की धमकी दे रहे थे, उनकी यहीं कोशिश गड़बड़ी की ओर इशारा करती है। क्योंकि उन्हें अपनी पोल खुलने का डर था। लेकिन पीवी में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया। इसकी वजह क्या है? सीधा है कि पीवी करने वाली टीमों ने इमानदारी से काम नहीं किया। द न्यूज इनसाइडर की टीम ने पीवी पर नजर रखी, इसमें सामने आया कि कई मिलों से टीम ने एक लाख रुपए से लेकर पांच पांच लाख रुपए लिए। बताया जा रहा है कि रैंडम टीम में शामिल एक महिला अधिकारी तो पांच लाख रुपए रिश्वत लेकर एक मिल संचालक के कम स्टॉक को भी दस्तावेज में पूरा कर गयी।
तो क्या अभी भी गड़बड़ी पकड़ी जा सकती है
यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि निश्चित ही यह घोटाला अब भी पकड़ा जा सकता है। विभाग के अधिकारियों को बस इतना ही करना है कि जिन राइस मिलर्स ने तय कोटे से ज्यादा धान लिया, वह कैसे लिया? किस इंस्पेक्टर ने ज्यादा धान दिया। एक राइस मिल परिसर में दो दो राइस मिल कैसे चल रहे हैं? तीसरा हर मिल की मिलिंग करने की क्षमता का ऑडिट होना चाहिए। इसके बाद उस मिल संचालक ने कितना धान एफसीआई को दे दिया, उससे तुलना होनी चाहिए। इससे गड़बड़ी पता चल जाएगी। तीसरा मिल संचालकों के बिजली मीटर का भी स्पेशल ऑडिट कराया जाना चाहिए।
दूसरा तरीका यह है कि जिन राइस मिलर्स ने जिला कमेटी द्वारा तय कोटे से ज्यादा धान लिया है, वह जो चावल एफसीआई को सप्लाई कर रहे हैं। इस चावल की जांच होनी चाहिए। एक तो यह चावल पीआर का नहीं हो सकता, दूसरा यह जांच होनी चाहिए कि चावल कितना पुराना है। एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि दिक्कत यह है कि एफसीआई में भी कुछ अधिकारी मिल संचालकों से मिले हुए हैं। प्रति गाड़ी वह भी पैसा लेते हैं। पिछले साल ही करनाल में राइस मिलर्स ने एफसीआई के अधिकारियों पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे।
पीवी करने वाले अधिकारियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए
यह इसलिए, क्योंकि इस बार सरकार की साख दांव पर है। सदन में सरकार ने विपक्ष को आश्वासन दिया था कि सरकारी धान में घोटाले को पकड़ा जाएगा। दो बार पीवी के बाद भी अभी तक घोटालेबाज सिर्फ इसलिए पकड़ में नहीं आ रहे हैं, क्योंकि पीवी करने वाली टीम भी इमानदारी से काम नहीं कर ही है। यदि यह टीम सही से काम करती तो धान का घोटाला 35 हजार टन नहीं बल्कि करोड़ों टन का है। यह कमी तो इसलिए दिखा दी गयी, क्योंकि मिलर्स को इसका लाभ इस तरह से मिल जाएगा कि वह यह दिखा देंगे कि धान सूख गया। इसलिए इसकी मात्रा कम हो गयी। इस तरह से यह मामूली कमी दिखा कर मिलर्स को बचाने का प्रयास किया गया है। पीवी करने वाले टीम को पता था कि कैसे मिलर्स को बचाया जाना है। इसलिए इतनी ही कमी दिखायी गयी,जिससे उनका काम भी चल जाए और मिलर्स के खिलाफ कार्यवाही भी न हो। क्योंकि जितना धान इस बार सरकारी खरीद में दिखाया गया, इससे बहुत कम मात्रा में प्रदेश में धान पैदा हुई है। लेकिन धान की फर्जी खरीद दिखा कर इसमें भारी गड़बड़ की गयी है।
हर रोज सौ से ज्यादा ट्रक आ रहे अलग अलग राइस मिल में, सबसे ज्यादा चावल वह मिलर्स मंगा रहे, जिन्होंने मिलिंग कमेटी द्वारा तय किए गए धान के कोटे से ज्यादा धान लिया
घोटाला पकड़ना है तो फिर मिलिंग कमेटी के कोटे से ज्यादा धान लेने वाले मिलर्स के खिलाफ सख्ती क्यों नहीं
द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो चंडीगढ़
सरकार ने दो दो बार पीवी करा ली। रैंडम पीवी भी हो चुकी। इसके बाद भी मिलर्स यूपी और बिहार से पीडीएस का चावल धड़ल्ले से मंगा कर स्टाॅक पूरा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ऐसे में सहज ही यह सवाल उठ रहा है कि यदि पीवी करने वाली टीमों ने इमानदारी से काम किया है तो फिर यह घोटाला पकड़ में क्यों नहीं आया? जाहिर है, पीवी करने वाले अधिकारियों ने सही से काम नहीं किया। जो उनकी निष्ठा पर सवाल खड़ा करता नजर आ रहा है। द न्यूज इनसाइडर टीम लगातार सरकारी धान खरीद पर नजर रखे हुए हैं। बकायदा से एक टीम बना कर इस घोटाले पर नजर रखी जा रही है। टीम ने रविवार को पिंगली रोड पर बड़ी संख्या में यूपी आैर बिहार से पीडीएस का चावल ला रहे ट्रकों का स्टिंग किया था। यह ट्रक उन मिलों में के गोदामों में खाली हो रहे हैं, जिन्होंने इस बार जिला कमेटी द्वारा तय किए गए धान के कोटे से ज्यादा मात्रा में सरकारी धान लिया है। हालांकि सरकार की मंशा साफ है, दो बार पीवी कराने का निर्णय, वह भी तब जब मिलर्स विरोध में एकजुट थे, लिया गया। इससे साफ है कि सरकार इमानदारी से घोटाले की तह में जाना चाह रही है। लेकिन अधिकारियों की संदेहास्पद कार्यप्रणाली की वजह से सरकार की सारी कोशिश बेकार होती नजर आ रही है। पीवी के मामले में विपक्ष की भूमिका पर भी सवाल उठ रहा है। विधानसभा में जहां कांग्रेस ने सरकार को इस मसले पर घेरा। दूसरी ओर कांग्रेस के कुछ नेता पीवी के विरोध में सोशल मीडिया पर बयानजारी करते दिखे। कांग्रेस के कुछ नेता तो गड़बड़ करने वाले मिलर्स के पक्ष में खड़े होते नजर आ रहे थे।
यूपी के सीएम के इलाके से आ रहे हैं ट्रक
- पीवी करानी वाली सरकार और पीवी करने वाले अधिकारी देख लें, यदि आपने इमानदारी से काम किया होता तो यूपी के गरीबों का निवाला यूं घोटालेबाज मिलर्स के गोदामों तक न पहुंच पाता। आपकी संदेहास्पद कार्यप्रणाली की वजह से यूं सरेआम धड़ल्ले से गरीबों का निवाला करनाल में आ रहा है
यूपी में पीडीएस का चावल लेकर आ रहे कई ट्रक तो यूपी के सीएम आदित्य नाथ योगी के क्षेत्र गोरखपुर से
दो जगह घोटाला
यह घोटाला सिर्फ हरियाण की अनाज मंडियों में ही नहीं आ रहा है, बल्कि यूपी और बिहार में भी हो रहा है। हरियाणा की मंडियों में जहां मिलर्स खाद्य आपूर्ति विभाग के खरीद इंस्पेक्टर से मिल कर धान की फर्जी खरीद की है। दूसरी ओर यूपी और बिहार में पीडीएस का चावल जो कि केंद्र की ओर से गरीबों के लिए भेजा गया था। यह चावल डिपो तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में बिक रहा है। यह ठीक ठीक इसी तरह से हो रहा है, जिस तरह से करनाल में आटा घोटाला हुआ था। यह आटा गरीबों के लिए था। माल आटा मिल से आया भी नहीं था, करनाल के खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते डिपो संचालकों ने पात्र गरीबों के अंगूठे आटा डिलिवरी पर लगवा लिए थे।
जो पीवी का विरोध कर रहे थे, उनमें ही ज्यादातर मंगवा रहे पीडीएस का चावल
करनाल में जो मिलर्स पीवी का विरोध कर रहे थे, वहीं इसमें शामिल है। द न्यूज इनसाइडर टीम के पास करनाल के मिलर्स का धान खरीद के जो सरकारी दस्तावेज हैं, इसके मुताबिक जिन लोगों ने तय कोटे से ज्यादा धान लिया है, वहीं पीवी का विरोध कर रहे थे। यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष राकेश ढुल ने बताया कि जिस तरह से मिलर्स सरकारी धान से चावल बनाने की प्रक्रिया बंद करने की धमकी दे रहे थे, उनकी यहीं कोशिश गड़बड़ी की ओर इशारा करती है। क्योंकि उन्हें अपनी पोल खुलने का डर था। लेकिन पीवी में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया। इसकी वजह क्या है? सीधा है कि पीवी करने वाली टीमों ने इमानदारी से काम नहीं किया। द न्यूज इनसाइडर की टीम ने पीवी पर नजर रखी, इसमें सामने आया कि कई मिलों से टीम ने एक लाख रुपए से लेकर पांच पांच लाख रुपए लिए। बताया जा रहा है कि रैंडम टीम में शामिल एक महिला अधिकारी तो पांच लाख रुपए रिश्वत लेकर एक मिल संचालक के कम स्टॉक को भी दस्तावेज में पूरा कर गयी।
तो क्या अभी भी गड़बड़ी पकड़ी जा सकती है
यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि निश्चित ही यह घोटाला अब भी पकड़ा जा सकता है। विभाग के अधिकारियों को बस इतना ही करना है कि जिन राइस मिलर्स ने तय कोटे से ज्यादा धान लिया, वह कैसे लिया? किस इंस्पेक्टर ने ज्यादा धान दिया। एक राइस मिल परिसर में दो दो राइस मिल कैसे चल रहे हैं? तीसरा हर मिल की मिलिंग करने की क्षमता का ऑडिट होना चाहिए। इसके बाद उस मिल संचालक ने कितना धान एफसीआई को दे दिया, उससे तुलना होनी चाहिए। इससे गड़बड़ी पता चल जाएगी। तीसरा मिल संचालकों के बिजली मीटर का भी स्पेशल ऑडिट कराया जाना चाहिए।
दूसरा तरीका यह है कि जिन राइस मिलर्स ने जिला कमेटी द्वारा तय कोटे से ज्यादा धान लिया है, वह जो चावल एफसीआई को सप्लाई कर रहे हैं। इस चावल की जांच होनी चाहिए। एक तो यह चावल पीआर का नहीं हो सकता, दूसरा यह जांच होनी चाहिए कि चावल कितना पुराना है। एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि दिक्कत यह है कि एफसीआई में भी कुछ अधिकारी मिल संचालकों से मिले हुए हैं। प्रति गाड़ी वह भी पैसा लेते हैं। पिछले साल ही करनाल में राइस मिलर्स ने एफसीआई के अधिकारियों पर रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे।
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पीवी करने वाले अधिकारियों की भूमिका की जांच होनी चाहिए
यह इसलिए, क्योंकि इस बार सरकार की साख दांव पर है। सदन में सरकार ने विपक्ष को आश्वासन दिया था कि सरकारी धान में घोटाले को पकड़ा जाएगा। दो बार पीवी के बाद भी अभी तक घोटालेबाज सिर्फ इसलिए पकड़ में नहीं आ रहे हैं, क्योंकि पीवी करने वाली टीम भी इमानदारी से काम नहीं कर ही है। यदि यह टीम सही से काम करती तो धान का घोटाला 35 हजार टन नहीं बल्कि करोड़ों टन का है। यह कमी तो इसलिए दिखा दी गयी, क्योंकि मिलर्स को इसका लाभ इस तरह से मिल जाएगा कि वह यह दिखा देंगे कि धान सूख गया। इसलिए इसकी मात्रा कम हो गयी। इस तरह से यह मामूली कमी दिखा कर मिलर्स को बचाने का प्रयास किया गया है। पीवी करने वाले टीम को पता था कि कैसे मिलर्स को बचाया जाना है। इसलिए इतनी ही कमी दिखायी गयी,जिससे उनका काम भी चल जाए और मिलर्स के खिलाफ कार्यवाही भी न हो। क्योंकि जितना धान इस बार सरकारी खरीद में दिखाया गया, इससे बहुत कम मात्रा में प्रदेश में धान पैदा हुई है। लेकिन धान की फर्जी खरीद दिखा कर इसमें भारी गड़बड़ की गयी है।
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