सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले अब सरकार को कर रहे ब्लैकमेल, काम बंद करने की धमकी
सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले अब सरकार को कर रहे ब्लैकमेल, काम बंद करने की धमकी
घरौंडा में सोमवार को बैठक की, मंगलवार को एसडीएम को सीएम के नाम सौंपा ज्ञापन
द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़
सीएम सिटी करनाल में सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले मिलर्स ने फिजिकल वैरिफिकेशन से बचने के लिए अब नया दांव खेला है। तीन मीटिंगों के बाद भी जब सरकार ने पीवी वापस नहीं ली तो मिलर्स ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसमें वह मिलर्स सबसे ज्यादा है, जिन्होंने सरकारी धान खरीद में गड़बड़ी की है। क्योंकि पीवी का सबसे ज्यादा खतरा उन्हें हैं, इसलिए वह सही काम करने वाले मिलर्स को साथ मिला कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है। मिल की प्रशासन को चाबियां सौंपने के पीछे भी यहीं चाल है। जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके। सरकार पीवी का निर्णय वापस लें। द न्यूज इनसाइडर ने एक टीम इस बार सरकारी धान खरीद सिस्टम की स्टडी करने के लिए लगा रखी है। टीम ने पाया कि यह घोटाला बहुत बड़ा है। इसमें फूड माफिया की सीधी मिलीभगत है। जो यूपी, बिहार, पंजाब हरियाणा तक फैला हुआ है। इसके साथ ही इस गैंग में एफसीआई और खाद्य आपूर्ति विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी मिले हुए है। यह अधिकारी भी नहीं चाह रहे कि स्पेशल पीवी हो, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो उनके काले कारनामे भी सामने आ सकते हैं। इसलिए ऐसे ही कुछ अधिकारियों ने अब इन मिलर्स को यह सलाह दी है। ध्यान रहे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सरकारी धान लेने वाले राइस मिलर्स की स्पेशल पीवी कराने का आदेश दिया है। घोटालेबाज राइस मिलर्स का यह पीवी से बचने का पहला हथकंड नहीं है, इससे पहले जब सरकार ने मिलों में पुलिस तैनात की थी तब भी उन्होंने काफी हो हल्ला मचाया था। पीवी पर भी उन्होंने खासा ऐतराज जताते हुए दावा किया था इससे उनका काम प्रभावित हो रहा है। जबकि जानकारों का कहना है कि पीवी टीम के निरीक्षण से धान से चावल बनाने का काम प्रभावित नहीं होता। इसके बाद भी जब सरकार स्पेशल पीवी कराने पर अड़ी है तो राइस मिलर्स ने पहले कुरुक्षेत्र के सफायर होटल में, फिर नीलकंठ में और सोमवार को घरौंडा में बैठक आयोजित की। घरौंडा की बैठक में ही तय किया गया कि प्रशासन को मिल की चाबियां सौंप दी जाए। इस पर अमल करते हुए मंगलवार को करनाल के राइस मिलर्स ने एसडीएम नरेंद्र पाल मलिक को ज्ञापन सौंपा है।
क्या होना चाहिए था
इसकी जांच होनी चाहिए थी। वह क्या कारण है, जिससे कुछ मिलर्स को तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया। इसमें कौन कौन अधिकारी शामिल है। उस अधिकारी ने ऐसा क्यों किया? उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
क्यों होनी चाहिए थी यह जांच?
क्योंकि इससे पता चलता कि घोटाले की शुरुआत हुई कैसे। कुछ राइस मिलर्स ने खाद्य आपूर्ति अधिकारी अतिरिक्त मेहरबानी कैसे दिखा रहे है? इसके पीछे आखिर क्या खेल है।
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पीवी सही तरह से क्यों नहीं हुई?
जब सरकार ने पीवी का निर्णय लिया, इसमें गड़बड़ी पकड़ी जा सकती थी। लेकिन पीवी टीम में शामिल कुछ अधिकारियों ने जांच के नाम पर उगाही की। इस वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आयी।
क्या होना चाहिए था
इस टीम की जवाबदेही तय होनी चाहिए थी। पीवी में एफसीआई के विशेषज्ञों के साथ साथ दूसरे क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए था। जिससे पीवी निष्पक्ष तरीके से होती। टीम में शामिल हर कर्मचारी व अधिकारी को अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी चाहिए थी।
धान की सरकारी खरीद और पीडीएस दरअसल कल्याणकारी योजना है। इससे जहां किसान को न्यूतम समर्थन मूल्य की गारंटी रहती है, वहीं इससे पीडीएस सिस्टम भी चलता है। यह कल्याणकारी योजना में घोटाला है।
क्या होना चाहिए
होना तो यह चाहिए कि सरकारी धान की खरीद पूरी इमानदारी से हो, जिससे किसान को उसकी मेहनत का वाजिब दाम मिल सके। गरीब को पेट भरने के लिए सस्ता राशन मिलता रहे। इसके लिए हर चरण पर इमानदारी होनी चाहिए थी।
क्यों होना चाहिए
प्याज उदाहरण है। इस बार धान उत्पादक किसान फसल बेचने के लिए मारे मारे फिरते रहे। उन्हें न्यूनम समर्थन मूल्य तक नहीं मिला। यदि किसानों ने धान उगाना बंद कर दिया तो क्या हम प्याज की तरह महंगा चावल खरीदने पर मजबूर नहीं हो जाएंगे।
मीडिया खबरे प्रकाशित न करें, इसके लिए मीडिया को भी नवाजने का दावा किया गया है। नीलकंठ में मिलर्स की बैठक में मीडिया की भी एक सूचि जारी की गयी,जिसमें बताया गया कि किसे कितनी रकम दी गयी। द न्यूज इनसाइडर इस मीडिया के नाम पर जारी इस सूचि की पुष्टि नहीं करता।न्यूज इनसाइडर की टीम इन मीडिया में चल रही खबरों का अध्ययन कर रही है, जिससे यह बताया जा सके कि इस घोटाले में किस मीडियाकर्मी की भूमिका क्या रही।
घरौंडा में सोमवार को बैठक की, मंगलवार को एसडीएम को सीएम के नाम सौंपा ज्ञापन
द न्यूज इनसाइडर का मत : सरकार को चाहिए कि ज्ञापन सौंपने वाले मिलर्स से एफसीआई और विशेषज्ञों की देखरेख मे उठवा लें धान सारे घोटाले का आसानी से पर्दाफाश हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्ट मिल संचलाकों ने अफसरों, नेताओं व मीडिया को रिश्वत देने के लिए खूब जुटाया चंदा
द न्यूज इनसाइडर ब्यूरो, चंडीगढ़
सीएम सिटी करनाल में सरकारी धान में गड़बड़ी करने वाले मिलर्स ने फिजिकल वैरिफिकेशन से बचने के लिए अब नया दांव खेला है। तीन मीटिंगों के बाद भी जब सरकार ने पीवी वापस नहीं ली तो मिलर्स ने दबाव बनाना शुरू कर दिया। इसमें वह मिलर्स सबसे ज्यादा है, जिन्होंने सरकारी धान खरीद में गड़बड़ी की है। क्योंकि पीवी का सबसे ज्यादा खतरा उन्हें हैं, इसलिए वह सही काम करने वाले मिलर्स को साथ मिला कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है। मिल की प्रशासन को चाबियां सौंपने के पीछे भी यहीं चाल है। जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके। सरकार पीवी का निर्णय वापस लें। द न्यूज इनसाइडर ने एक टीम इस बार सरकारी धान खरीद सिस्टम की स्टडी करने के लिए लगा रखी है। टीम ने पाया कि यह घोटाला बहुत बड़ा है। इसमें फूड माफिया की सीधी मिलीभगत है। जो यूपी, बिहार, पंजाब हरियाणा तक फैला हुआ है। इसके साथ ही इस गैंग में एफसीआई और खाद्य आपूर्ति विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी मिले हुए है। यह अधिकारी भी नहीं चाह रहे कि स्पेशल पीवी हो, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो उनके काले कारनामे भी सामने आ सकते हैं। इसलिए ऐसे ही कुछ अधिकारियों ने अब इन मिलर्स को यह सलाह दी है। ध्यान रहे उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने सरकारी धान लेने वाले राइस मिलर्स की स्पेशल पीवी कराने का आदेश दिया है। घोटालेबाज राइस मिलर्स का यह पीवी से बचने का पहला हथकंड नहीं है, इससे पहले जब सरकार ने मिलों में पुलिस तैनात की थी तब भी उन्होंने काफी हो हल्ला मचाया था। पीवी पर भी उन्होंने खासा ऐतराज जताते हुए दावा किया था इससे उनका काम प्रभावित हो रहा है। जबकि जानकारों का कहना है कि पीवी टीम के निरीक्षण से धान से चावल बनाने का काम प्रभावित नहीं होता। इसके बाद भी जब सरकार स्पेशल पीवी कराने पर अड़ी है तो राइस मिलर्स ने पहले कुरुक्षेत्र के सफायर होटल में, फिर नीलकंठ में और सोमवार को घरौंडा में बैठक आयोजित की। घरौंडा की बैठक में ही तय किया गया कि प्रशासन को मिल की चाबियां सौंप दी जाए। इस पर अमल करते हुए मंगलवार को करनाल के राइस मिलर्स ने एसडीएम नरेंद्र पाल मलिक को ज्ञापन सौंपा है।
1 जब जिला मिलिंग कमेटी ने मिल संचालकों के लिए धान खरीद का कोटा निश्चित किया था, फिर कुछ राइस मिलर्स को इस कोटे से ज्यादा धान क्यों दिया गया? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है
क्यों, द न्यूज इनसाइडर की टीम बता रही कि सरकारी धान की खरीद में घोटाला हुआ
क्या होना चाहिए था
इसकी जांच होनी चाहिए थी। वह क्या कारण है, जिससे कुछ मिलर्स को तय कोटे से ज्यादा धान दिया गया। इसमें कौन कौन अधिकारी शामिल है। उस अधिकारी ने ऐसा क्यों किया? उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
क्यों होनी चाहिए थी यह जांच?
क्योंकि इससे पता चलता कि घोटाले की शुरुआत हुई कैसे। कुछ राइस मिलर्स ने खाद्य आपूर्ति अधिकारी अतिरिक्त मेहरबानी कैसे दिखा रहे है? इसके पीछे आखिर क्या खेल है।
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पीवी सही तरह से क्यों नहीं हुई?
जब सरकार ने पीवी का निर्णय लिया, इसमें गड़बड़ी पकड़ी जा सकती थी। लेकिन पीवी टीम में शामिल कुछ अधिकारियों ने जांच के नाम पर उगाही की। इस वजह से गड़बड़ी पकड़ में नहीं आयी।
क्या होना चाहिए था
इस टीम की जवाबदेही तय होनी चाहिए थी। पीवी में एफसीआई के विशेषज्ञों के साथ साथ दूसरे क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए था। जिससे पीवी निष्पक्ष तरीके से होती। टीम में शामिल हर कर्मचारी व अधिकारी को अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी चाहिए थी।
क्यों होनी चाहिए थे यह प्रावधानक्योंकि हुआ यह कि गड़बड़ करने वाले मिलर्स ने बासमती धान को भी परमल धान दिखा दिया। यहीं सबसे बड़ा घोटाला है। दूसरा वजन का अध्ययन सही नहीं किया गया। टीम की जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए
गरीब के निवाले और किसान की मेहनत पर डाका है3
धान की सरकारी खरीद और पीडीएस दरअसल कल्याणकारी योजना है। इससे जहां किसान को न्यूतम समर्थन मूल्य की गारंटी रहती है, वहीं इससे पीडीएस सिस्टम भी चलता है। यह कल्याणकारी योजना में घोटाला है।
क्या होना चाहिए
होना तो यह चाहिए कि सरकारी धान की खरीद पूरी इमानदारी से हो, जिससे किसान को उसकी मेहनत का वाजिब दाम मिल सके। गरीब को पेट भरने के लिए सस्ता राशन मिलता रहे। इसके लिए हर चरण पर इमानदारी होनी चाहिए थी।
क्यों होना चाहिए
प्याज उदाहरण है। इस बार धान उत्पादक किसान फसल बेचने के लिए मारे मारे फिरते रहे। उन्हें न्यूनम समर्थन मूल्य तक नहीं मिला। यदि किसानों ने धान उगाना बंद कर दिया तो क्या हम प्याज की तरह महंगा चावल खरीदने पर मजबूर नहीं हो जाएंगे।
भ्रष्टाचार कितना बड़ा, इसे यूं समझे
खरीद में गड़बड़ी करने वाले हर अधिकारी को उसका तय हिस्सा दिया गया है।
जान पहचान वाले अधिकारी खरीद सिस्टम में रहे, उन्हें मंडी में लगवाने के लिए भारी पैसा दिया गया।
दूसरे राज्यों से आया एफसीआई के अधिकारी बिना आब्जेक्शन के ले लें, इसलिए उन्हें प्रति ट्रक पैसा दिया जाता है।
मीडिया खबरे प्रकाशित न करें, इसके लिए मीडिया को भी नवाजने का दावा किया गया है। नीलकंठ में मिलर्स की बैठक में मीडिया की भी एक सूचि जारी की गयी,जिसमें बताया गया कि किसे कितनी रकम दी गयी। द न्यूज इनसाइडर इस मीडिया के नाम पर जारी इस सूचि की पुष्टि नहीं करता।न्यूज इनसाइडर की टीम इन मीडिया में चल रही खबरों का अध्ययन कर रही है, जिससे यह बताया जा सके कि इस घोटाले में किस मीडियाकर्मी की भूमिका क्या रही।
द न्यूज इनसाइडर का मत : सरकार का चाहिए कि सरकारी धान से चावल न बनाने की बात करने वाले मिलर्स की धान को उठवा लें। क्योंकि भ्रष्टाचारी मिल संचालक मान कर चल रहे हैं कि सरकार ऐसा निणर्य नहीं ले सकते, इसलिए उन्होंने दबाव की यह रणनीति बनायी है। यदि सरकार इस धान को उठा लेती है तो अपने आप गड़बड़ी पता चल जाएगी। जिससे गड़बड़ करने वाले मिल संचालकों की पोल खुद ब खुद खुल सकती है। सरकार को चाहिए कि इनसे धान उठवा कर उन राइस मिलर्स को दे दी जाए, जिन्हें या तो कम धान मिली है, या उनका रिकार्ड काफी अच्छा है। इससे जहां सरकार का काम आसान हो जाएगा, वहीं धान की सरकारी खरीद में होने वाली गड़बड़ी को पकड़ा जा सकता है। क्योंकि इस घोटाले के आरोपियों को सजा मिलनी बेहद जरूरी है। यदि ऐसा नहीं होता तो इससे किसान, गरीब और आम आदमी को आने वाले वक्त में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
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