पीवी में बचने के हथकंडे खोजने में जुटे राइस मिलर्स, स्टॉक पूरा करने को मंगाया बाहर से  चावल 

कुरुक्षेत्र में मिलर्स ने बैठक कर फंड जुटाने पर दिया जोर, बोले उपर पैसे भेजने हैं 

द  न्यूज इनसाइडर , चंडीगढ़ 
सरकारी धान से चावल बनाने का काम करने वाले मिलों के फिजिकल वैरिफिकेशन (पीवी )दोबारा कराने के सरकार के निर्णय से राइस मिलर्स में हड़कंप मचा हुआ है। पहली पीवी किसी तरह से पूरी करने वाले मिल संचालकों के सामने अब समस्या यह है कि दोबारा कैसे स्टॉक पूरा दिखाया जाए। इसी को लेकर एक ओर जहां राइस मिल संचालक बैठक कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी मात्रा में यूपी और बिहार से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का चावल मंगाया जा रहा है। इस चावल के दम पर अपना स्टॉक पूरा दिखाया जा सके। करनाल में हर रोज बड़ी संख्या में चावल के ट्रक आ रहे हैं। जिन्हें मिल परिसरों के गोदामों में खाली कराया जा रहा है। इस बार धान की सरकारी खरीद में बड़ा घोटाला हुआ है। खरीद एजेंसियों के अधिकारियों ने मिलर्स व आढ़तियों के साथ मिल कर धान की फर्जी खरीद की।  द न्यूज इनसाइडर ने इस घोटाले को उठाया। सरकार ने इस पर संज्ञान लिया। विपक्ष ने विधानसभा में मामला उठाया तो उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने पीवी कराने के निर्देश दिए। उन्होंने  विधानसभा में यह भी बोला था कि जो भी दोषी होगा उसे सख्त सजा दी जाए। मामला उछलता देख कर गड़बड़ी करने वाले अधिकारी अब घोटाले को दबाने का प्रयास करने में जुटे हुए हैं। यहीं वजह रही कि पहली पीवी में मिलों में ज्यादा गड़बड़ी सामने नहीं आयी। अब सरकार ने दोबारा से पीवी कराने का निर्णय लिया है। इस बार भी कोशिश यहीं हो रही है कि किसी भी तरह से स्टॉक पूरा दिखा दिया जाए। जिससे यह मामला दब जाए। विपक्ष के नेता चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बताया कि यह सरकार घोटाला करने वालों को ही संरक्षण दे रही है। सरकार की गलत नीतियों की वजह से धान उत्पादक किसानों को खासी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा। किसानों  को धान का वाजिब दाम तक नहीं मिला। एक ओर तो सरकार बार बार दावा करती है कि भ्रष्टाचार खत्म किया जाएगा। दूसरी ओर सरकार का भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों पर कोई दबाव नहीं है।




पहली पीवी के कागजों की यदि जांच कर ली जाए तो सामने आ जाएगा घोटाला 
यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि दोबारा पीवी करने की बजाय यदि जांच अधिकारी पहली पीवी के कागजों की सही से जांच कर लें तो घोटाला सामने आ सकता है। एडवोकेट ढुल ने बताया कि बहुत से राइस मिलर्स ने दिखाया कि उन्होंने बड़ी मात्रा में चावल तैयार कर एफसीआई को दे दिया। यहां यह सवाल उठाया जाना चाहिए कि उनके मिल की चावल बनाने की क्षमता कितनी है। इस क्षमता से ही एफसीआई को दिये गये चावल की मात्रा का मिलान कर लिया जाए तो गड़बड़ सामने आ सकती है। क्योंकि इनके राइस मिल इतना चावल इतने कम समय में तैयार नहीं कर सकते। यानी यह चावल यूपी और बिहार से आया है। दूसरा यह है कि कई राइस मिल संचालक तो सिर्फ बासमती धान का काम करते हैं। वह परमल धान से चावल कैसे तैयार करेंगे? तीसरा मामला यह है कि सरकारी दस्तावेजों में ही बहुत से राइस मिलर्स को जिला मिल कमेटी द्वारा तय किए गए धान के कोटे से ज्यादा सरकारी धान दिया गया। यह क्यों दिया गया? इसके  पीछे वजह क्या है? इसकी जांच होनी चाहिए। इस तरह से यदि छोटी छोटी जांच हो जाए तो यह घोटाला अपने आप सामने आ सकता है।  एडवोकेट ने बताया कि लेकिन इस तरह की जांच नहीं हो रही है। ऐसा नजर आ रहा है कि चंडीगढ़ मुख्यालय में बैठे कुछ अधिकारी भी इस भ्रष्टाचार को दबाने की कोशिश में लगे हुए हैं। उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।



दोबारा पीवी करने वाली टीम को मैनेज करने की तैयारी

दूसरी ओर कुरुक्षेत्र में राइस मिलर्स ने एक बैठक कर दो से तीन लाख रुपए प्रति मिल जुटाने का प्रस्ताव रखा। बैठक में दावा किया गया कि यह रकम सरकार तक भेजी जाएगी, जिससे पीवी करने वाली टीम सख्ती न बरते। मिल संचालकों के नेताओं ने कहा कि फंड देना जरूरी है। इस मसले पर हालांकि राइस मिलर्स दो भागों में बंटे हुए हैं। एक वह राइस मिलर्स है जो इस रकम को देना नहीं चाह रहे हैं। उनका कहना है कि क्योंकि उन्होंने किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की है, इसलिए वह यह रकम क्यों दें। यदि पीवी होती है तो उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं आएगी। दूसरे वह राइस मिलर्स है, जिन्होंने तय कोटे से ज्यादा धान लिय है, वह चाहते हैं कि रकम जुटायी जानी चाहिए।इस मामले में अभी तक कोई सहमति तो नहीं बनी है।




बस किसी तरह से समय निकल जाए

मिलर्स और गड़बड़ करने वाले अधिकारियों की कोशिश है कि किसी भी तरह से समय निकल जाए। क्योंकि जैसे जैसे समय निकल रहा है, उतनी ही तेजी से चावल का स्टॉक एफसीआई को दिया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि फूड माफिया इसके पीछे काम कर रहा है। वह यूपी और बिहार से पीडीएस का सस्ता चावल खरीद कर यहां ला रहा है, यहीं चावल एफसीआई को दिया जा रहा है। इस तरह से राइस मिलर्स यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने तो तय समय में धान से चावल तैयार कर एफसीआई को दे दिया है। इसलिए उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की है। राइस मिलर्स के साथ गड़बड़ी करने वाले अधिकारी भी यहीं चाह रहे है कि एक बार चावल एफसीआई के गोदाम में लग जाए। इसके बाद किसी तरह की दिक्कत नहीं रहेगी। इसलिए अधिकारी और मिलर्स तेजी से चावल सप्लाई कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गड़बड़ी करने वालों में एफसीआई के कुछ अधिकारी भी शामिल है, इसलिए वह भी तेजी से चावल जमा कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। हर कोई यहीं चाह रहा है कि बस कुछ समय निकल जाए। इसके बाद वह सब कुछ ठीक कर लेंगे।




इस बार यदि पीवी हो तो टीम में होने चाहिए विशेषज्ञ

 इस गड़बड़ी को रोकने का एक ही तरीका है, वह यह है कि  पीवी टीम में एफसीआई विशेषज्ञों की टीम को शामिल किया जाए। यह टीम चावल में नमी की मात्रा चैक करेगी। जिससे यह पता चलेगा कि चावल नया है या पुराना है। इसके साथ ही टीम में वह विशेषज्ञ भी शामिल होन चाहिए जो बासमती व परमल धान का अंतर करना जानता हो। पीवी की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। टीम के ज्यादातर सदस्या बाहर से होने चाहिए। इसके साथ ही टीम में पुलिस या विजिलेंस के अधिकारी भी शामिल होने  चाहिए। जिससे पीवी निष्पक्ष तरीके से हो सके। भ्रष्टाचार मिटाओ मोर्चे के अध्यक्ष पवन कुमार ने बताया कि पीवी इमानदारी से हो जाए तो करनाल, तरावड़ी, नीलोखेड़ी व इंद्री और घरौंडा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आ सकती है। यह मामला इसलिए गंभीर है, क्योंकि इससे किसान और गरीब के हक पर सीधा डाका डल रहा है। यह ऐसा माफिया है जिसकी जड़ तक जाना जरूरी है,क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में माफिया को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा, तब तक किसान को उसकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल सकता। गरीब आदमी तक अनुदान पर दिया जाने वाला भोजन नहीं पहुंच सकता। इसलिए इस माफिया का पर्दाफास होना जरूरी है।

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