क्या विज की सक्रियता मनोहर के लिए संजीवनी का काम करेगी?


क्या विज की सक्रियता मनोहर के लिए संजीवनी का काम करेगी?



जेजेपी भले ही भाजपा के साथ सरकार में हैं, लेकिन उनके सामने असली चुनौती अपने मतदाता को संभलना है। सीएम का बैकफुट पर रहना जेजेपी के लिए सियासी तौर पर खासा फायदेमंद है। ऐसे में यदि विज सक्रिय रहते हैं तो वह किसी न किसी तरह से भाजपा को लाइमलाइट में रखने में कामयाब हो सकते हैं। 


 फाइल फोटो गूगल इमेज 

 द न्यूज इंसाइडर ब्यूरो चंडीगढ़ 

विधानसभा चुनाव के निराशाजनक प्रदर्शन से भाजपा और सीएम मनेाहर लाल खट्टर का आत्मविश्वास खासा डगमगाया हुआ है। जेजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने की मजबूर के चलते सीएम पूरी तरह से बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। उन्होंने अभी तक न तो कोई ऐसा निर्णय लिया और न ऐसा कोई कदम उठाया जिससे लगे कि उनका आत्मविश्वास वापस आ रहा है। सीएम पिछले कार्यकाल में भी ज्यादा बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। उनकी इस बात को लेकर कई बार आलोचना होती रही कि ब्यूरोक्रेसी पर उनका नियंत्रण नहीं है। वह कार्यकर्ताओं की सुनते नहीं है, ब्यूरोक्रेसी के कहने पर ही काम करते हैं। अब जबकि किसी तरह से भाजपा सरकार बन गयी है, ऐसे में यदि सीएम का यही रवैया रहा तो पार्टी के लिए खासा नुकसानदायक साबित हो सकता है। सीएम की इसी निष्क्रियता के बीच  होम मिनिस्टर अनिल विज की सक्रितयता सीएम के लिए सियासी संजीवनी का काम कर सकती है। क्योंकि अभी तब बीजेपी खेमा पूरी तरह से निष्क्रिया बैठा है। इसका सियासी लाभ उठाने के लिए जेजेपी पूरी तरह से तैयार है। उन्होंने अपने स्तर पर काम करना शुरूभी कर दिया है। मसलन कम से कम दो ऐसे मौके आए, जिसका श्रेय लेने में जेजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वरिष्ठ राजनीतिक समीक्षक डाक्टर कंवर दीप सिंह का कहना है कि जेजेपी और बीजेपी दोनों के लिए सियासी तौर पर सक्रिय रहना बेहद जरूरी है। लेकिन बीजेपी इस मोर्चे पर पिछड़ती नजर आ रही है। दूसरी ओर जेजेपी इसमें बीजेपी से कई कदम आगे चल रही है। यह अलग बात है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व खासा सक्रिय है, लेकिन राज्य इकाई में ऐसी सक्रियता नजर नहीं आ रही है।


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जेजेपी की मजबूरी 


जेजेपी को पता है कि उन्होंने अपने वफादार वोटर  जाटों की भावनाओं के विपरीत जाकर भाजपा से हाथ मिलाया है। ऐसे में अब उनकी प्राथमिकता है कि जाट समुदाय में यह संदेश जाए कि सरकार में रह कर दुष्यंत चौटाला उनकी चौधर बरकरार रखे हुए हैं। इसके लिए उन्हें लगातार न सिर्फ सक्रिय रहना होगा, बल्कि ऐसे कदम उठाने होंगे कि जाट समुदाय में विश्वास जगा रहे। इसकी शुरुआत जेजेपी ने कर भी दी, मसलन पुराली खेत में गलाने के काम आने वाले डिकम्पोजर मात्र 23 रुपए प्रति बोतल मिलता है, खट्टर ने घोषणा की कि इसकी कीमत आधा कर दी। यानी किसान को अब यह साढ़े 12 रुपए में मिलेगा। देखने में तो यह छूट कुछ भी नहीं है, लेकिन जेजेपी ने इसका श्रेय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जेजेपी का मीडिया विंग इसे लेकर पूरी तरह से सक्रिय हो गया। दूसरा माैका आया था एचटेट की परीक्षा की दूरी कम करना। इसका श्रेय लेने के लिए भी जेजेपी ने पूरा जोर लगाया।


जेजेपी सही दिशा में चल रही है 

जेजेपी अभी तक सही दिशा में चल रही है। वह हर कदम सोच समझ कर उठा रही है। उन्हें पता है कि मतदाता को अपने साथ कैसे जोड़ कर रखना है। इसके लिए वह बीजेपी पर दबाव बनाने में पूरी तरह से कामयाब रही है। हालांकि जेजेपी में आपसी फूट की बातें भी बाहर आ रही है। लेकिन पार्टी के रणनीतिकार इससे ज्यादा विचलित नजर नहीं आ रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि जाट वोटर को खुश करना है तो यह दिखाना हेागा कि वह बीजेपी पर कितना  दबाव बनाने में कामयाब हो सकते हैं। इसी को ध्यान में रखकर जेजेपी काम कर भी रही है।




भाजपा के लिए दिक्कत क्यों?

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जेजेपी के विपरीत भाजपा में ऐसा कोई विंग नहीं जो पार्टी के लिए काम करें। भाजपा के मंत्री लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने की कला में माहिर नहीं है। वह अक्सर अच्छे मौके पर चूक जाते हैं। जिसका श्रेय पार्टी को नहीं मिल पाता। भाजपा के लिए दूसरी दिक्कत यह है कि इसके नेता भी सियासी तौर पर ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं।वरिष्ठ पत्रकार राजीव रंजन राय कहते हैं कि विज को यदि छोड़ दिया जाए तो बीजेपी के बाकी विधायक और मंत्रियों के पास स्पष्ट सियासी विजन नहीं है। वह अभी भी प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के नाम पर ही लोगों के बीच में जा रहे हैं। जो कि पार्टी के लिए कम से कम शुभ संकेत नहीं बोला जा सकता है। क्योंकि इसकी वजह यह है कि अब मतदाता प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के नाम पर भाजपा को वोट डालने वाला नहीं है। कम से कम इस बार के विधानसभा चुनाव में तो यह साबित ही हो गया है। इसके बाद भी भाजपा के स्थानीय नेता यहीं राग अलाप रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए कि उन्हें अब स्थानीय मुद्​दों पर बात करनी चाहिए। आम आदमी की दिक्कतों को उठाना चाहिए। इनका समाधान निकालने की दिशा में काम करना चाहिए।





तो ऐसे में विज की सक्रियता कैसे पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकती है 

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विज ने पिछली बार भी काफी सक्रियता दिखायी। हालांकि इसका लाभ आम आदमी को ज्यादा नहीं मिला। लेकिन हरियाणा का मतदाता यह देखना चाहता है कि उनका नेता अधिकारियों पर कितनी पकड़ रखता है। कैसे उन्हें काबू में करता है। क्योंकि प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी और सरकारी कर्मचारी आम आदमी का जायज काम भी नहीं करता। दफ्तर में आम आदमी को खासी दिक्कत आती है। खासतौर पर पुलिस में तो आम आदमी की सुनवाई नहीं होती। ऐसे में जब विज अचानक निरीक्षण कर अधिकारियों व कर्मचारियों की जवाबदेती सुनिश्चित करता है तो आम आदमी को खासा आनंद आता है। आम आदमी को लगता है कि यहीं नेता है जो उनकी भावनाओं के अनुरूप काम करता हैं। ऐसे में अब  जहां सीएम मनोहर लाल लगभग बैकफुट पर हैं, ऐसे में विज की सक्रिता से मतदाता खासे  उत्साहित रह सकते हैं।





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लेकिन यह सक्रियता नुकसान भी दे सकती है 

क्योंकि विज एक लेवल के बाद यदि अधिकारियों व कर्मचारियों को टाइट करते हैं  तो इससे नुकसान भी हो सकता है। विज की छवि ऐसी बनी हुई कि वह किसी की सुनते नहीं है। जो कम से कम सियासी तौर पर सही नहीं मान जा सकती। अपनी बात को वह बहुत ही मुखरता से रखते हैं। लेकिन इस छवि का विज को नुकसान भी होता है, इस वक्त वह भाजपा के सीनियर लीडर में हैं, लेकिन इतना होने के बाद भी उनका नाम सीएम की रेस में नहीं आया। इसके लिए एक ही बात बोली जाती है कि वह सभी को साथ लेकर नहीं चल सकते हैं। जो कि कहीं न कहीं उनके खुद के लिए नुकसानदायक साबित होती है।

फिर भी सीएम को इसका लाभ ही मिलेगा 





विज यदि सक्रिय रहते हैं तो निश्चित ही इसका लाभ बीजेपी और सीएम को मिलेगा। सीएम की पिछले कार्याकाल में इसी बात को लेकर आलोचना होती रही कि उनका ब्यूरोक्रेसी पर कोई कंट्रोल नहीं है। कार्यकर्ता भी इसी वजह से नाराज थे। लेकिन अब विज जिस होम डिपार्टमेंट लेते ही सक्रिय हुए हैं, इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ सकता है। जो इस वक्त पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा कि विज किस तरह से और कितने सक्रिय रहते हैं। वह 19 नवंबर को पुलिस अधिकारियों की बैठक लेने जा रहे हैं। जो सुखद है। निश्चित ही वह अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित कर सकते हैं। जिसका लाभ आम आदमी को मिल सकता है। यदि ऐसा होता है तो बीजेपी के प्रति एक बार फिर से मदताता का विश्वास वापस आ सकता है।


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