बालको में नौकरी के लिए महिलाओं का संघर्ष

बालको में नौकरी के लिए महिलाओं का अंतहीन संघर्ष: क्या दिला पाएंगा उन्हें उनका वाजिक हक कोरबा छत्तीसगढ़ से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट वह न क्रांतिकारी है। न एक्टिविस्ट। न ही उसे पता कि आंदोलन कैसे चलाया जाता है। वह साफ व स्पष्ट बात करती है। बिना लाग लपेट के। वह गृहणी है। साधारण। मैंने जब मिलने के लिए समय मांगा तो परेशान हो गई। मीडिया कर्मी को इंटरव्यू कैसे देगी?उसकी चिंता यह थी। एक स्थानीय साथी की वजह से वह मिलने के लिए तैयार हो गई। यह तीन मंजिला एक जर्जर सा घर है। बहुत छोटा। इतना कि शुरू होेते ही खत्म हो जाता है। यहां परंपरा है, घर में प्रवेश से पहले जूते बाहर निकालने की। मैं भी अपने जूते बाहर निकाल साथी के साथ उनके घर गया। एक गृहणी हमारे सामने थी। कृष्णी राठौर यह नाम है, उस महिला का जो इन दिनों कोरबा बालको में महिलाअों को रोजगार का हक दिलाने की लड़ाई लड़ रही है। मैं विशेष तौर पर ...